अमर
वृक्ष के तले चौपाल
जहाँ बैठकर पायल की रुनझुन
बहक जाता था दिल
दिल जवां
हो जाता था इश्क
आज उसी वृक्ष तले
चौपाल पर इश्क
खोजते
विकास के नए आयाम में
खुद चुकी चौपाल
वृक्ष नदारद
धुंधलाई आँखों से
घूम हुए का पता पूछते
लोग कहते क्या पता?
समय बदला
घूम हुई पायल की रुनझुन
इश्क हुआ घूम
पास की टाल में
लकड़ी का ढेर
कटे पेड़ की लकड़ी
गूंगी हुई लकड़ी
निहार रही लकड़ी के टाल से
मौत आई
उसी इश्क की लकड़ी से जलाया मुझे
रूह तृप्त हुई
हुआ स्वर्ग नसीब
इश्क ऐसे हुआ अमर
संजय वर्मा ‘दॄष्टि ‘
मनावर जिला धार