“कुंडलिया”
पढ़ते-पढ़ते सो गया, भर आँखों में नींद।
शिर पर कितना भार है, लगता बालक बींद॥
लगता बालक बींद, उठाए पुस्तक भारी।
झुकी भार से पीठ, हँसाए मीठी गारी॥
कह गौतम कविराय, आँख के नंबर बढ़ते।
अभी उम्र नादान, गरज पर पोथी पढ़ते॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी