गहराव नहीं है !
सरल सलिल सा है प्रवाह ,
ठहराव नहीं है !!
टूट रहे हैं वयस बन्ध अब ,
रिश्तों की भरमार यहां है !
भला बुरा संज्ञान नहीं है ,
इनकी अब संभार कहां है !
तटबंधों की टूटी सीमा ,
गहराव नहीं है !!
लुप्त हो रही आज विरासत ,
गुमी जा रही आज संस्कृति !
रोज विखंडन देख रहे हैं ,
भाती नहीं आज अनुभूति !
सिसक रही है आज स्मृतियां ,
लहराव नहीं है !!
अनजाने बन्धन ढोते हैं ,
पर काँधे मजबूत नहीं है !
ठगी यहां पल पल होती है ,
हाथों यहाँ सबूत नहीं है !
दिग्दर्शक हमने बिसुराये ,
भटकाव यहीं है !!
अपनों से संवाद रखें हम ,
आज ज़रूरी इसे जान लें !
राय मशवरा मान मुन्नवल ,
अपनों में हो इसे भान लें !
हित के संरक्षक पहचाने ,
बिखराव नहीं है !!