मानसून : असली वित्त मंत्री
पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा था, भारत का असली वित्त मंत्री तो मानसून है. मानसून आ गया है और विभिन्न राज्यों में मानसून का कहर भी देखने को मिल रहा है. मानसून पर ही हमारी कृषि व्यवस्था जुडी हुई है. वर्षा अच्छी हुई तो खरीफ फसलें अच्छी तो होंगी ही, भूगर्भ स्तर बढ़ेगा, नदी, तालाब, झील आदि में वर्षा जल का संचयन होगा, जिससे बारिश के बाद भी सिंचाई के साथ पीने के पानी की उपलब्धता बनी रहेगी. मानसून जहाँ किसानों के लिए खुशियों का सौगात लेकर आता है वहीं अत्यधिक वर्षा और जल-जमाव के कारण शहरों एवं गाँव में रहनेवालों का जनजीवन अस्त-ब्यस्त हो जाता है. ऐसे समय में आपदा-प्रबंधन विभाग के लोगों की भूमिका सराहनीय होती है जो बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने के प्रयास में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते. कभी-कभी सेना के जवानों की भी मदद ली जाती है और सेना के जवान भी देश के नागरिकों की रक्षा में जी-जान लगा देते हैं.
दो दिन पहले ६ जुलाई को महाराष्ट्र का नागपुर भारी बारिश के बाद पानी में डूब गया. 9 घंटे की बारिश ने नागपुर को पानी-पानी कर दिया. शहर की सड़के तालाब बन गई और घरों में पानी घुस गया. एयरपोर्ट भी पानी में डूब गया. बारिश के चलते नागपुर के पिपला इलाके आदर्स संस्कार स्कूल के 500 बच्चों की जिंदगी खतरे में पड़ गई. सुबह जब बच्चे स्कूल पहुंचे तबतक तो हालात सामान्य थे लेकिन धीरे-धीरे पानी इतना बढ़ गया कि स्कूल के अंदर तक पहुंच गया. स्कूल ने तुरंत पुलिस को सूचना दी और पुलिस ने बच्चों को नाव और ट्रकों के सहारे निकालना शुरू किया.
बारिश की वजह से नागपुर के विधानसभा में पानी भर गया, जिसकी वजह से सदन की कार्यवाही रोकनी पड़ी. पावर स्टेशन में पानी भरने की वजह से बिजली की सप्लाई ठप हो गई और महाराष्ट्र के मंत्री विनोद तावड़े सहित कई विधायक मोमबत्ती जलाकर अपने कमरे में बैठे नजर आए. बताया जा रहा है कि विधानसभा के पास के नालों की सफाई ही नहीं हुई थी और इसी वजह से पानी विधानसभा में भर गया. नालों में बियर की बोतलें भी भड़ी पाई गई. जगह जगह फ़ैली गन्दगी स्वच्छ भारत की कहानी बयान कर रही थी.
बड़ी बात यह है कि खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस नागपुर के रहने वाले हैं. इतना ही नहीं
केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी यहीं के हैं और आरएसएस का मुख्यालय भी यहीं है.
कह सकते हैं वर्षा रानी इन महानुभावों के चरण पखारने गयी होगी और सूर्य भगवान भी अपनी उर्जा की अहमियत बतलाना चाह रहें होगे. आखिर हम सब सूर्य पुत्र ही तो हैं, बतौर प्रधान मंत्री. अगले कार्य काल में नागपुर स्मार्ट सिटी बन ही जाएगा, जब वर्षा के जल स्तर की सूचना आपदा प्रबंधन विभाग को स्वत: चला जाएगा और बिजली की भी आपातकालीन व्यवस्था स्वत: हो जायेगी.
वैसे देश के कई राज्यों में भारी बारिश से बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए हैं. बिहार के मुजफ्फरपुर में बाढ़ के हालात हैं, वहां हजारों लोग पानी में फंसे हुए हैं. मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में भारी बारिश की वजह से शहर में तालाब बन गया है. गुजरात के डांग जिले में भी भारी बारिश से कई इलाकों में जल जमाव हो गया है.
गुजरात में बारिश ने कोहराम मचा दिया है. वडसाड़ में भारी बारिश की वजह से दमन गंगा नदी ऊफान पर है. वहीं, डांग जिले में हुई भारी बारिश के बाद अंबिका नदी में बाढ़ आ गई. बाढ़ के चलते डांग से लगे नवसारी जिले के गणदेवी तहसील के 16 गांवो में अलर्ट जारी किया गया है. अकेले डांग के वधई में 6 इंच बारिश हुई है. गुजरात के तापी में भी मूलसलाधार बारिश के बाद कई इलाकों में बाढ़ जैसे हालात बन गए है. तापी के सोनगढ़ में दो घंटे में 8 इंच बारिश के बाद नदी नालों में उफान है.
मध्यप्रदेश के कई शहरों में भी इन दिनों जमकर बारिश हो रही है. सिहोर के आष्टा में हुई तेज बारिश ने नगर पालिका के इंतजामों की पोल खोलकर रख दी. करीब चार घंटे हुई बारिश के बाद इलाके में जगह-जगह पानी भर गया. जिससे लोगों को काफी परेशानी हो रही है. सड़कों पर जल ताण्डव का दृश्य देखा जा सकता है.
बिहार के मजफ्फरपुर में भारी बारिश ने तबाही मचा रखी है. नदियों का जलस्तर खतरे के निशान से काफी ऊपर है. गांव में बाढ़ आ गई है. लोग गांव छोड़ने को मजबूर हो गए हैं. बाढ़ से बचने के लिए लोग खतरा भी मोल ले रहे हैं. एक नाव पर 20 से 25 लोग भर भरकर गांव से बाहर निकल रहे हैं.
कर्नाटक के उडुपी जिले भी भयंकर बाढ़ आयी है और वहां का भी जन जीवन अस्त-ब्यस्त हो गया है. अभी तमिलनाडु का नंबर नहीं आया है. आएगा ही वहाँ की स्थिति भी हर साल भयावह होती है.
गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में बाढ़ से जन जीवन अस्त-ब्यस्त तो हुआ ही है. जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, और असम में अत्यधिक वर्षा स्वाभाविक है, इन पहाड़ी इलाके में जब अत्यधिक वर्षा होती है तो भूस्खलन भी होता है. पहाड़ छिटकते हैं और जान-माल की भारी क्षति होती है. नेपाल की नदियों से बिहार में बाढ़ हर साल आता ही है.
सवाल है कि वर्षा तो स्वाभाविक है. वर्षा के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते. हमारी अपनी व्यवस्था कैसी है. पिछले सत्तर साल में क्या बदला है. नए नए घर, गाँव, शहर, नगर, महानगर तेजी से विकसित हो रहे हैं. पर जल प्रबंधन के मामले में अभी भी हमें यानी सरकारों को, सिस्टम को बहुत कुछ करना बाकी है. नदियों और तालाबों को हम भरते जा रहे हैं. उनकी जल धारण क्षमता दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है. जल संग्रह हो नहीं पाता और वे उफनती है तो किनारों को नुकसान करती हुई आबादी को लील जाती है. नदियों में तलछट यानी गाद जमा होता जा रहा है और उनकी गहराई कम होती जा रही है. नितीश कुमार इस गंगा और बिहार की अन्य नदियों के बारे में इस मुद्दे को कई साल से उठा रहे हैं. पर अभी तक कुछ ठोस होता दीखता नहीं. सारी गन्दगी नदियों में ही बहाई जाती है. फलस्वरूप नदियाँ उथली होती जा रही है. तालाबों का भी वही हाल है. काफी तालाब भर दिए गए और उनके ऊपर घर, फ्लैट्स, दुकान या व्यापारिक संसथान बन गए. फिर पानी, जाए तो जाए कहाँ? बरसात से पहले नालों की सफाई होनी चाहिए वह होता नहीं. प्लास्टिक एवं एनी कचड़ा नालियों में डाला जाता है और जाम की स्थिति पैदा होती है. नगरों, महानगरों के विकास के साथ साथ नाली और नालों का भी समुचित प्रबंधन होना चाहिए और उनका समुचित रखरखाव भी.
हम नागरिकों को भी अपना कर्त्तव्य समझना चाहिए और अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए. जैसे कचड़े को उचित जगह पर डालें. प्लास्टिक का प्रयोग कम से कम करें और उसका सही ढंग से निस्तारण भी करें. नालों को अतिक्रमित कर उसपर न तो अपना घर का विस्तार करें, न ही उनपर खोमचे वाले को अपना खोमचा लगाने को उत्साहित करें. खोमचे वाले भी नालों को जाम करने में काफी हद तक जिम्मेदार हैं. खोमचे से सामान खरीदकर खानेवाले और फेंके जानेवाले डिस्पोजेबुल कप-प्लेट्स भी अंततोगत्वा नाली नालों में जाते हैं और उसे जाम करते हैं. नगर निकाय और सफाई विभाग को भी नालों की सफाई पर उचित ध्यान देना चाहिए. बजट तो हर कार्य के लिए बनता ही है. आपदा प्रबंधन और मुआवजा का भी. मुआवजा में बन्दर बाँट से कोई अछूता नहीं रहता. हर कोई मौके का फायदा उठाता है.
दिक्कत सभी को होती है. जिम्मेदारी भी कमोबेश हर किसी की है. इसलिए सिर्फ दोषारोपण करने से काम नहीं चलेगा. सरकार और व्यवस्था में बैठे लोगों की जिम्मेदारी ज्यादा है साथ ही नागरिकों की जिम्मेदारी भी कम नहीं है. सबके साथ समन्वय बैठाकर ही चलने की जरूरत है. प्रकृति का भी अत्यधिक दोहन से प्रकृति नाराज होती है और अपना विकराल रूप धारण करती है. इसलिए समन्वय जरूरी है. सबका साथ सबका विकास ! नहीं?
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.