मुझे देखकर सब तेरा नाम पूछते हैं
मुझे देखकर सब तेरा नाम पूछते हैं
रात-दिन और सुबहो-शाम पूछते हैं
कैसे छिपा रखा है तुझ को खुद में
बारहाँ सब मुझसे वही राज़ पूछते हैं
तसब्बुर में आके तासीर में ढल जाना
मेरे रक़ीब अब मेरा ये अंदाज़ पूछते हैं
जो सवाल उठा कभी तेरे सहमे लबों पे
उसका आज भी मुझसे जवाब पूछते हैं
जिन्हें समझ ही नहीं हुश्न-ओ -इश्क़ की
वो कभी आग़ाज़ तो कभी अंजाम पूछते हैं
— सलिल सरोज