तुम बिन
अधूरा हूं तुम बिन
पर उम्मीद है तुम एक दिन आओगी
कहीं से अचानक आकर
मुझसे टकराओगी।
जानोगी मेरा हाल
और मुझे देख मुस्कुराओगी
शायद उस दिन तुम
न चाहते हुए भी
मेरी बन जाओगी।
मेरा सुख-दुःख बांटोगी
मेरा जीवन मधुर बनाओगी
और मेरे हृदय में बस
मेरी काव्य धारा बन जाओगी।
फिर लिख डालूंगा इतनी कविताएं तुम पर
कि जब ढूंढोगी खुदको
तो मेरी कविताओं में ही खुदको पाओगी
और फिर कई जन्मों तक
तुम बस मेरी बनकर रह जाओगी।।
मुकेश सिंह
सिलापथार, असम