नारी
दर्द छुपा है सीने में आंखों में लाचारी है।
सहमी सहमी सी रहती..
क्या यह भारतीय नारी है?
सिसक रहा मासूम बचपन
खून से लथपथ अंतरतल
झुलस रहा कहीं यौवन
कहीं बेड़ियों सी जकड़न
क्या यह भारतीय नारी है?
हर पल अस्मत रौंधी जाती।
गली-गली चौराहों पर ।
पर नवरात्रों में पूजी जाती
यह कैसी भारतीय नारी है?
मूक बधिर बन बैठे नेता ।
रहनुमा मस्त सियासत में ।
झूठे नारे झूठे वादे….
भाषण देते जनता में?
बहुत सह चुकी ..मौन रहकर।
अब सहने की तुम्हारी बारी है।
जाग जाओ….
अगर समृद्ध भारत चाहिए
अब ‘नारी की बारी है’….।
नहीं चाहिए धन और दौलत
ना जमीन जमींदारी है।
दो जीने का ‘हक’ बराबर
गूंज उठे चहुं ओर यह ‘गूंज’…
यही.. हाँ.. यही..तो
समृद्ध ..स्वावलंबी..स्वतंत्र
भारत की नारी है।
भारत की नारी है।
— विजेता सूरी ‘रमण’
31 .3 .2018