कवितापद्य साहित्य

नेतागिरी


चलो जीत गए हो तुम
और हार गए अब हम।
देखो मुहब्बत का वो अफसाना भी
कहीं हो गया है गुम।
तुम्हारी जीतने की जिद्द ने
हमें हर बार हराया है।
हम अच्छे-भले इंसानों को
कट्टरपंथ सिखाया है।
पर इतने से भी दिल न भरा
और तुमने नया कुचक्र चलाया।
जाति की दीवार खड़ी की
और नफरत का बीज लगाया।
हमें आपस में ही लड़वाकर
तुमने गंदा खेल रचाया।
कुर्सी की खातिर तुमने
भाई को भाई से लड़वाया।
सत्ता की बूंदी चखने को
खूब हमारा लहू बहाया।
अपनी हवेली चमकाने को
तुमने हमारा घर जलाया।
समझ गए हैं अब भी
ना आजादी मिल पाई है।
फिर आजाद-भगत को लाना होगा
भारत मां ने यह आवाज लगाई है।
बंद करो तुम खेल अपना
राजनीति हमको भी आती है।
देश पे कोई आंच न आये
बस यही भय हमको लील जाती है।
सुन लो प्यारे नेताओं
वक्त है अब भी संभल जाओ।
यह देश तुम्हारा भी है
इसे ना तुम और सताओ।।

मुकेश सिंह
सिलापथार,असम।

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl