उमंग
अभी तो ज़रा खिले थे पात उनके
दम अभी तो भरा था
देख सूरज को
मन हरा हरा था
उठ चले थे आसमां की ओर
लग रहा था सारा जहाँ अपना
चढ़ती गिरती सांसों पर
बस कहाँ था अपना
चटक रही थी खुशी
उनके अंग अंग से
झूमते हवा संग
बज रहे मृदंग से
अभी अभी तो देखो
सफर शुरू हुआ उनका
जाने कितने पड़ाव अभी आयेंगे
नये नये अनुभव उन्हें करायेंगे
समय की हर थाप पर
मंज़िल की हर माप पर
संतुलित होते जायेंगे
दृढ़ होकर मुस्कुरायेंगे
—शिप्रा खरे