लघुकथा- उपलब्धि
नौकर के सहारे घर के अंदर आते सेठजी को देख कर चंद्रमोहन के सिरहाने बैठी पत्नी खड़ी हो गई. बिस्तर पर सीधा बैठने की कोशिश करते हए चंद्रमोहन ने कहा, ‘ अरे रोहन ! आओ. बैठो.’ और पास पड़े हुए स्टूल की ओर इशारा किया. जिस पर बैठा हुआ उन का पौता उठ खड़ा हुआ, ‘ बैठिए सेठजी !’
‘ कैसे हो यार ?’ सेठजी ने नौकर के हाथ से फल का थैला ले कर चंद्रमोहन के सिरहाने रखते हुए सुखदुख की बातें कही. फिर वे उन की सेवा में तत्पर परिवार को देख कर बोले,’ वाकई चंद्रमोहन परिवार का सुख इसे कहते हैं. परिवार सेवा में जुटा हुआ है ?’ कहते हुए वे उदास हो गए.
इस पर चंद्रमोहन ने कहा, ‘ यार ! तू पैसे वाला है. जानता है कि पैसे के बिना सुख नहीं मिलता है. मैं ने सभी को परेशान कर रखा है.’
अभी चंद्रमोहन के बातें पूरी नहीं हुई थी कि उन का बड़ा बेटा रूष्ट होते हुए बोला ‘ पिताजी ! आप भी कैसी बातें करते हैं. आप की सेवा हमारा सौभाग्य है. आप ने हमारा भविष्य बनाने में अपना पूरा जीवन लगा दिया. क्या हम आप की इतना सेवा भी नहीं कर सकते हैं ?’
यह सुन कर सेठजी के आंख में आंसू आ गए, ‘ वाकई चंद्रमोहन ! तुम ने परिवार के साथ सुखदुख के दिन काट कर परिवार को सही मायने में पाला है.’ सेठजी अपने रौ में कह गए, ‘ मुझे देखो ! मेरी बीवी मुझे छोड़ कर स्वर्गवासी हो गई और नौकर के भरोसे पलने वाले मेरे बच्चे, मुझे नौकर के भरोसे छोड़ कर विदेश चले गए.’
यह कहने के साथ सेठजी ने अपना हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठा कर सभी को आशीर्वाद दिया और नौकर के सहारे चुपचाप घर के बाहर चले गए. मोहन और उस का परिवार अपलक उन को जाता देखता रहा.
— ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”