” जुगनू ” !! ( दोहावली )
जुगनू सा जीवन कहो , दप दप करती आस !
तम से लड़ना है यहां , जब तक घट में सांस !!
अंधियारे के सामने , झुकते देखे शीश !
ना मांगे यह सूरमा , उजियारे की भीख !!
अंधियारी सी रात हो , टिप टिप बरसे मेह !
ऐसे में दे रोशनी , जला जला कर देह !!
इक दूजे की चाह है , ऐसा रस बरसाय !
घनी अंधेरी रात भी , हीरक सी दमकाय !!
अंधियारा कहता यहां , केवल चमको रात !
सूरज का फेरा हुआ , छिप जाये बारात !!
चन्दा , सूरज दीप हैं , उजियारा बिखराएं !
पास अगर कुछ है नहीं , चम चम करते जाएं !!
मन को उजला कीजिये , सुघड़ , सलोनी देह !
जुगनू सा बस चमकिये , धरे रहेगें गेह !!
थोड़े में खुश हों सदा , थोड़े की हो चाह !
जुगनू देवे सीख यह , जगमग हो बस राह !!