लघुकथा- शार्टकट
छात्रों को तन्मयता से पढ़ाते हुए दिनेश को मालूम ही नहीं पड़ा कि उसके वरिष्ठ शिक्षक दीनदयाल जी कब आ गए .चौंककर उसने कहा, “आइए गुरुजी. बैठिए. कोर्स बहुत ज्यादा है इसलिए जल्दी-जल्दी पढ़ाना पड़ता है ध्यान लगाकर.”
“कोई बात नहीं, पढ़ाइए.” उन्होंने कहा और बच्चों को बैठने का इशारा करते हुए पुनः दिनेश से बोले, ” ऐसा क्यों नहीं करते हो कि सबसे कुंजी मंगवा लो . फिर उसी से बच्चे लिख लिया करेंगे. उनको याद करने में सहूलियत भी रहेगी और आपको …”
“वह तो ठीक है लेकिन ये क्या सीख पाएंगे?” दिनेश ने हिम्मत कीं. आखिर वह उसके बुजुर्ग और वरिष्ठ थे.
” अरे भाई ! तुम ही लोग कहते हो शॉर्टकट से चलना चाहिए”, आगे के शब्द दिनेश को सुनाई नहीं दिए. सामने चरती भेड़े उस की निगाहों में घूमने लगी.
— ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’