महागठबंधन की राजनीति में हसीन सपने और विकृत बयानबाजी
अभी लोकसभा चुनाव होने में काफी समय है लेकिन प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी की रैलियांें औेर उनकी जनसभाओं में उमड़ रही भारी भीड़ को देखकर राजनैतिक विश्लेषक जहां अपना अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं। वहीं विरोधी दलों में भी बैचेनी चरम सीमा पर बढ़ती दिखायी पड़ रही है। यही कारण है कि अब महागठबंधन में शामिल सभी दलों के नेता अगला चुनाव हर हाल में जीतने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो रहे हैं तथा हर प्रकार की विकृत बयानबाजियां करके माहौल को बिगाड़ने के साथ ही अपने पक्ष में वातावरण बनाने की हर संभव कोशिश भी कर रहे हैं। अभी हाल ही पीएम मोदी के सफल दौरों के बाद जहां बीजेपी को एक बार फिर आस बंधती दिखायी पड़ रही है वहीं अन्य दलों के चेहरे पर चेहरे उजागर होते जा रहे हैं। देश के विरोधी दलों और मीडिया के हर मंच पर 2019 का शोर सुनायी पड़ने लगा है लेकिन देश की जनता अभी शांत है। प्रधानमंत्री मोदी कबीर की निर्वाणस्थली मगहर से अपना अनौपचारिक चुनाव प्रचार प्रारम्भ कर चुके हैं तथा अपने भाषणों के माध्यम से अगले आम चुनावों में उठने वाले मुद्दों तथा राजनीति पर भी संकेत व संदेश दे चुके हैं यही कारण है कि आगामी दिनों में पीएम मोदी व बीजेपी के अध्यक्ष उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल जैसे राज्यों का तूफानी दौरा करने वाले हैं।
सबसे बड़ी समस्या बीजेपी के लिए उप्र में दिखायी पड़ रही है, इसलिए उप्र में महागठबंधन के नेता अब पूरी ताकत के साथ जनता के बीच में अपने आप को मजबूत दिखाने का प्रयास तो कर रहे है। लेकिन वह लोग जिस प्रकार की बयानबाजियां व राजनैतिक नाटक कर रहे हैं, उससे उनका अधिक प्रभाव दिखायी नहीं पड़ रहा है। वोटों व जाति के गणित के आधार पर तो यह मजबूत होकर एक बार बीजेपी को सत्ता से बाहर करने का सपना तो देख सकते हैं लेकिन इन दलों में कई बड़े आपसी विरोधाभास भी हैं तथा सभी दलों के नेताओं के हसीन सपने भी। लोकतंत्र में सभी दलों व नेताओं को सपने देखने से कोई नहीं रोक सकता, लेकिन उनकी जमीनी हैसियत और लोकतांत्रिक व्यवहार जरूर देखा जाता है।
अभी प्रदेश में सपा और बसपा के कार्यकर्ता सम्मेलन हो चुके हैं। जिसमें सपा और बसपा के नेताओं ने जमकर बयानबाजियां की हैं जिनको देखकर लगता है कि ये दल और इनके नेतागण बौद्धिक रूप से कितने दिवालिया हो चुके हैं तथा इनके मन में कितना अहंकार, परिवारवाद, जातिवाद और घृणा का भाव अंदर तक भरा पड़ा है। आज ये लोग अपना खोया हुआ रोजगार पाने के लिए लालायित हैं। बसपा नेत्री मायावती को उप्र की जनता कई बार पूरी तरह नकार चुकी है। बसपा के ही कई कद्दावर नेताओं ने उन पर दलितों की बेटी न होकर दौलत की बेटी होने का आरोप लगाया है तथ पार्टी से बगावत की है। आने वाले दिनों में अभी और बगावतें हो भी सकती हैं।
बसपा को 2014 के लोकसभा चुनावों में शून्य प्राप्त हुआ था और 2017 के विधानसभा चुनावों में भी उनका सूपड़ा साफ हो गया। लेकिन उसके बाद नगर निगम चुनावों में उनके प्रदर्शन में कुछ सुधार हुुआ और अलीगढ़ व मेरठ जैसे शहरों में अपना मेयर जिताने में सफलता हासिल की। लेकिन यही मायावती एक बार फिर से महागठबंधन के सहारे उठने का प्रयास कर रही हैं। बसपा पर इस समय राजनैतिक दल के रूप में मान्यता व अस्तित्व को बचाये रखने का संकट है। यही कारण है कि वह इतनी सीटें व वोट पाना चाहती हैं कि उनका अपना राजनैतिक अस्तित्व बचा रहे। आगामी विधानसभा चुनावों में वह कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाह रही है। लेकिन अभी तक इसका स्वरूप सामने नहीं आया है।
अभी मायावती का किसी भी क्षेत्रीय दल के साथ कोई बड़ा समझौता नहीं हुआ है, लेकिन उनकी कोआर्डिनेटर की बैठक में कार्यकर्ताओं में उमंग व उत्साह बढ़ाने के लिए उनको यह झूठ पर आधारित जानकारी दी गयी है कि सभी क्षेत्रीय दलों के नेताओं के बीच मायावती को देश का अगला पीएम बनाने के लिए आम सहमति बन गयी है। जबकि सच यह है कि अभी महागठबंधन का आकार ही तय नहीं हो सका है तब पीएम पद पर आम सहमति कहां से आ गयी? महागठबंधन के दूसरे दल समाजवादी पार्टी से क्या इस विषय पर बात हो गयी है कि महागठबंधन की सरकार बनने पर अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम ंिसंह को एक बार फिर किनारे बैठाना पसंद करेंगे?
अभी स्वयं मायावती अपने लिए लोकसभा की सीट का जुगाड़ तक नहीं कर पा रही हैं। वहीं यादव परिवार ने अपनी सीटें तय भी कर ली हैं। सपा और बसपा दोनों में ही जहर उगलने वाली व बेवकूफी भरी विकृत बयानबाजी जारी है जिससे पता चल रहा है कि यदि ये लोग सत्ता में वापस आ गये तो देश के हालात एक बार फिर पूर्व पीएम वीपी सिंह, देवगौड़ा तथा गुजराल के युग में पहुंच जायेंगे। अभी जो विकास का एक नया मार्ग प्रशस्त होता दिखायी पड़ रहा है वह एक बार फिर रसातल में चला जायेगा। जनता की जरा सी गलती से पूरा देश बर्बाद हो जायेगा। समाजवादी कार्यकर्ताओं की एक बैठक को संबोधित करते हुए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि पीएम यह बता दें कि देश में चुनाव कब होंगे। इन महामूर्ख महानुभाव को यह भी नहीं पता कि देश में चुनाव कराने व घोषणा करवाने के कुछ संवैधानिक नियम होते हैं।
अभी बसपा की बैठक हुई जिसमें बसपा कार्यकर्ताओं ने मायावती को देश को अगला पीएम बनाने का हसीन सपना संजोया है। देश की जनता में भी मायावती के बारे में भी हसीन छवि बनकर उभरी है। बसपा के कार्यकर्ता सम्मेलन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयप्रकाश का अभिनदंन किया गया था, लेकिन अपने अभिनंदन भाषण में उन्होंने एक ऐसी बात कर दी कि उनकी वहीं पर विदाई हो गयी। जयप्रकाश कुछ ही घंटे पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। जयप्रकाश ने बहिन मायावती को खुश करने के लिए बेहूदी शब्दावली का प्रयोग किया। मीडिया में उनकी बात प्रचारित होने के बाद कुछ ही घंटों में उनकी नौेकरी चली गयी। जयप्रकाश ने कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए कहा था कि वह विदेशी मां की संतान हैं इसलिए कभी भी भारत का पीएम नहीं बन सकता। वहीं उन्होंने बीजेपी के कई नेताओं के लिए भी काफी अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था लेकिन मीडिया ने बड़ी ही चालाकी के साथ केवल राहुल गांधी वाला हिस्सा दिखाया और बताया है। आज जयप्रकाश राजनीति में अकेले पड़ गये हैं लेकिन अपने भाषण देने और पद से हटाये जाने के बाद उनको अब मीडिया की ताकत का एहसास हो गया होगा। बसपा नेत्री मायावती ने जयप्रकाश को हटाकर व अपना स्पष्ट बयान देकर एक तीर से कई निशाने साधने का प्रयास किया है। उन्होंने साफ संकेत दिया है कि वे अगले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता व ऐसी बयानबाजियां बर्दाश्त नहीं करेंगी जिससे उनके बचे खुचे राजनैतिक अस्तित्व पर बुरा असर पड़ जाये।
लेकिन जयप्रकाश को पार्टी से निकालने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव ने जिस प्रकार से पूरे मामले में बीजेपी को जिस प्रकार से निशाना बनाया है वह और भी बेहूदा व उनकी बिगड़ी हुई विकृत मानसिकता का प्रतीक है। सपा और बसपा की नजदीकियों से पता चल रहा है कि अब ये लोग अपने सभी पापों को बचाने के लिए विदेशी महिला की चरण वंदना करने पर उतारू हो गये हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव भाषा शैली की मर्यादा को पूरी तरह भूल चुके हैं। वे लोकसभा चुनावों के परिणामों की तुलना फुटबाल के फाइनल से कर रहे हैं। वहीं राहुल गांधी उनको पूरी तरह से स्वदेशी विचारधारा से ओतप्रोत नजर आ रहे हैं। अब यही समाजवादी टोंटीचोर लोग सबसे बड़े चोर की गोदी में जाकर बैठ गये हैं।
सबसे आश्चर्य की बात यह है कि राहुल गांधी के विदेशी मां की संतान होने का मामला तो बसपा की बैठक में उठा और बसपा नेत्री ने अपने नेता को दल से निकाल भी दिया तो इस मामले में भाजपा और संघ कहां से आ गया? सपा मुखिया का कहना है कि राहुल गांधी पूरी तरह से भारतीय हैं लेकिन भाजपाई बतायें कि वह क्या हैं? यह कितना मूर्ख है। ऐसे नेता समाज में कितना जहर उगल रहे हैं, यह इन लोगों को भी नहीं पता हैं। इन नेताओं के मस्तिष्क के सही इलाज की आवश्यकता है। सपा मुखिया अखिलेश यादव को तो भी स्वयं अपनी असली मां धर्म और देश के विषय के बारे में जानना और बताना चाहिए। सपा मुखिया अपना हर जन्म दिन ब्रिटेन में ही मनाने क्यों जाते हैं? उनकी विदेश यात्रा का खर्च वास्तव में कौन उठा रहा है?
अखिलेश यादव अपनी असली कहानी क्यों नहीं बता रहे? जातिवाद, परिवारवाद की राजनीति कौन कर रह रहा है। परियोजनाओं में तथा विकास के नाम पर भयंकर घोटाले किसके दौर में हुए ये सभी जानकारियां भी अखिलेश यादव को जनता के समाने रखनी चाहिए। महाठबंधन के नेता अब अपने अंतिम दौर से गुजर रहे हैं तथा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बेलगाम हो गये हैं। देश की जनता ही इन दलों के नेताओं को वास्तविक सबक सिखायेगी। आज यादव परिवार व बसपा मुखिया मायावती अपनी-अपनी खीझ को मिटाने के लिए बेसिरपैर की बयानबाजी कर रहे हैं, जिससे आगामी दिनों में देश व प्रदेश का राजनैतिक वातावरण और अधिक विषैला होने वाला है।
— मृत्युंजय दीक्षित