क्या हम फिर से जज़िया युग में जा रहे हैं?
Mob Lynching अर्थात भीड़ द्वारा हत्या पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा कानून बनाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह आदेश क्यों नहीं दिया कि अगर पुलिस और प्रशासन सही ढंग से काम करे। तो जनता को सड़कों पर उतर कर गौ की रक्षा न करनी पड़े। न ही कोर्ट ने गौकशी करने वालों पर सख्त टिप्पणी की है। मान लो की चोर के चोरी करते पकड़ा जाये और भीड़ उसे दंड दे। तो क्या पुलिस केवल भीड़ को आरोपी बनाकर चोर को पीटने के अपराध में सख़्त से सख़्त सजा देगी। क्या चोरी करने के अपराध में चोर को और सही समय पर कार्यवाही ने करने के लिए पुलिस को दंड नहीं मिलना चाहिए? ऐसे तो कल को हिन्दुओं को अपनी गौ चुराने वालों से भी भयभीत होना पड़ेगा। क्या हिन्दुओं को अपनी ही संपत्ति-पशुधन की रक्षा करने का अधिकार नहीं है? मान लीजिये कि किसी लड़की के साथ बलात्कार करने का कोई प्रयास कर रहा हो और वह अपनी रक्षा के लिए बलात्कारी को घायल कर दे या उसे मार दे। तो वह अपराध नहीं अपितु आत्मरक्षा कहलाता हैं। यह विशेष प्रावधान गौकशी करने वालों से गौरक्षा करने पर क्यों लागु नहीं होता। गौकशी को न रोक कर अपने कर्त्तव्य का पालन न करने वाले पुलिस पर आपराधिक मामला दर्ज कर सख्त सजा क्यों नहीं होना चाहिए। इन प्रश्नों पर पाठकों को विचार अवश्य होना चाहिए।
सत्य यह है कि इस पूरे प्रकरण में कोर्ट,सरकार और पुलिस प्रशासन की भूमिका हिन्दुओं को असंतुष्ट करने वाली हैं। मानो या न मानो ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेज द्वारा मीडिया में गौरक्षों की गुंडई आदि चिल्लाने से जज और अदालत दबाव में आते हुए प्रतीत हो रहे हैं। यह लोकतंत्र और भारतीय संविधान के लिए खतरा है।
क्यूंकि उसे गौहत्यारे के हितों की चिंता है। मगर गौपालकों के हितों का क्या? गौरक्षा करते हुए अनेक युवाओं को अपनी जान गवानी पड़ी। उनके जीवन का क्या कोई मोल नहीं है? उनके हितों के लिए कोर्ट ने कभी कोई टिप्पणी नहीं दी। इससे यह प्रतीत होता है कि हम फिर से जज़िया युग में जा रहे है।
— डॉ विवेक आर्य