भारतीय सेना में मुसलमान और ओवैसी का बयान
(ओवैसी ने बयान दिया कि भारतीय सेना में मुसलमानों की भर्ती बड़ी संख्या में क्यों नहीं होती? इस सवाल का जवाब आपको इतिहास की विस्मृत घटनाओं से देंगे। ये घटनाएं 1947 में भारत-पाकिस्तान के विभाजन से सम्बंधित है। उस समय में बलूचिस्तान रेजिमेंट में सभी मुस्लिम सिपाही थे। उन्होंने हिन्दुओं के साथ जो बर्ताव किया उसे जानकर पाठकों के रोंगटे खड़े हो जायेंगे। )
” उन्नीस बीस अगस्त को बलूच फौज आई और हम हिंदुओं को मारना शुरू कर दिया।किसी तरह जान बचाकर हम भारत आ गये।”
विभाजन की पीड़ा याद करते हुये कृष्ण खन्ना ने यह बात पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर जी टी वी पर कही। खन्ना जी के दशकों के प्रयास के बाद उन्हें पाकिस्तान का वीसा मिला था ताकि वो अपने पुश्तैनी घर को देखने की इच्छा पूरी कर सकें। ध्यान दीजिये बलूच फौज जिसे विभाजन के समय हिंदुओं की सुरक्षा करनी थी उसी ने हिंदुओं को मारना शुरू कर दिया था । यही रवैया बलूच रेजिमेंट का हर जगह हिंदू-सिखों के लिये रहा।
देश में पिछले स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी जी के भाषण के पश्चात् देश भर में हिंदी-बलूची भाई-भाई चल रहा है। बलूची भी सोशल मीडिया और अन्य मंचों से हमारा सहयोग पाकिस्तान से आजाद होने के लिये मांग रहे हैं। दोनों पक्षों द्वारा भाईचारे की बात करना प्रशंसनीय है। हो सकता है कि भारत के हित में बलूचिस्तान की आजादी हो या फिर हमारी मदद पाकिस्तान को वहां और उलझा दे ताकि काश्मीर पर दबाव कम हो। वैसे भी जहां अत्याचार हो रहा हो उसके खिलाफ खड़े होना ठीक ही है। भावनाओं से अलग होकर बस राष्ट्र हित में बलूचियों का जितना उपयोग किया जा सके वही उत्तम कूटनीति है।इस प्रयास में साझा हित भी है।
देश के विभाजन के समय बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय नहीं हुआ था।जब पाकिस्तान ने ऐसा बलपूर्वक किया तो बलूचियों ने बगावत की। बगावत कुचल दी गई तो उन्हें भारत याद आने लगा। तो आइये आज देश के स्वतंत्रता दिवस पर हम भी इतिहास की भूली बिसरी स्मृतियों पर प्रामाणिक दस्तावेजों के माध्यम से दृष्टिपात करें जब देश ने 15 अगस्त 1947 के दिन स्वतंत्र होकर विभाजन का दंश झेला था। इतिहास से सबक सीखकर ही सभी पक्ष आज के इस पावन पर्व पर हिंसा से दूर रहने का संकल्प ले सकते हैं।
विभाजन पश्चात भारत सरकार ने एक तथ्यान्वेषी संगठन बनाया जिसका कार्य था पाकिस्तान छोड़ भारत आये लोगों से उनकी जुबानी अत्याचारों का लेखा जोखा बनाना। इसी लेखा जोखा के आधार पर गांधी हत्याकांड की सुनवाई कर रहे उच्च न्यायालय के जज जी डी खोसला लिखित, 1949 में प्रकाशित , पुस्तक ‘ स्टर्न रियलिटी’ विभाजन के समय दंगों , कत्लेआम,हताहतों की संख्या और राजनैतिक घटनाओं को दस्तावेजी स्वरूप प्रदान करती है। हिंदी में इसका अनुवाद और समीक्षा ‘ देश विभाजन का खूनी इतिहास (1946-47 की क्रूरतम घठनाओं का संकलन)’ नाम से सच्चिदानंद चतुर्वेदी ने किया है। नीचे दी हुयी चंद घटनायें इसी पुस्तक से ली गई हैं जो ऊंट के मुंह में जीरा समान हैं।
* 11 अगस्त 1947 को सिंध से लाहौर स्टेशन पह़ुंचने वाली हिंदुओं से भरी गाड़ियां खून का कुंड बन चुकी थीं।अगले दिन गैर मुसलमानों का रेलवे स्टेशन पहुंचना भी असंभव हो गया।उन्हें रास्ते में ही पकड़कर कत्ल किया जाने लगा।इस नरहत्या में बलूच रेजिमेंट ने प्रमुख भूमिका निभाई।14और 15 अगस्त को रेलवे स्टेशन पर अंधाधुंध नरमेध का दृश्य था।एक गवाह के अनुसार स्टेशन पर गोलियों की लगातार वर्षा हो रही थी। मिलिट्री ने गैर मुसलमानों को स्वतंत्रता पूर्वक गोली मारी और लूटा।
* 19 अगस्त तक लाहौर शहर के तीन लाख गैर मुसलमान घटकर मात्र दस हजार रह गये थे। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति वैसी ही बुरी थी।पट्टोकी में 20 अगस्त को धावा बोला गया जिसमें ढाई सौ गैर मुसलमानों की हत्या कर दी गई।गैर मुसलमानों की दुकानों को लूटकर उसमें आग लगा दी गई।इस आक्रमण में बलूच मिलिट्री ने भाग लिया था।
* 25 अगस्त की रात के दो बजे शेखपुरा शहर जल रहा था। मुख्य बाजार के हिंदू और सिख दुकानों को आग लगा दी गई थी।सेना और पुलिस घटनास्थल पर पहुंची। आग बुझाने के लिये अपने घर से बाहर निकलने वालों को गोली मारी जाने लगी। उपायुक्त घटनास्थल पर बाद में पहुंचा। उसने तुरंत कर्फ्यू हटाने का निर्णय लिया और उसने और पुलिस ने यह निर्णय घोषित भी किया।लोग आग बुझाने के लिये दौड़े।पंजाब सीमा बल के बलूच सैनिक, जिन्हें सुरक्षा के लिए लगाया गया था, लोगों पर गोलियाँ बरसाने लगे।एक घटनास्थल पर ही मर गया , दूसरे हकीम लक्ष्मण सिंह को रात में ढाई बजे मुख्य गली में जहाँ आग जल रही थी , गोली लगी।अगले दिन सुबह सात बजे तक उन्हें अस्पताल नहीं ले जाने दिया गया।कुछ घंटों में उनकी मौत हो गई।
* गुरुनानक पुरा में 26 अगस्त को हिंदू और सिखों की सर्वाधिक व्यवस्थित वध की कार्यवाही हुई।मिलिट्री द्वारा अस्पताल में लाये जाने सभी घायलों ने बताया कि उन्हें बलूच सैनिकों द्वारा गोली मारी गयी या 25 या 26 अगस्त को उनकी उपस्थिति में मुस्लिम झुंड द्वारा छूरा या भाला मारा गया। घायलों ने यह भी बताया कि बलूच सैनिकों ने सुरक्षा के बहाने हिंदू और सिखों को चावल मिलों में इकट्ठा किया।इन लोगों को इन स्थानों में जमा करने के बाद बलूच सैनिकों ने पहले उन्हें अपने कीमती सामान देने को कहा और फिर निर्दयता से उनकी हत्या कर दी।घायलों की संख्या चार सौ भर्ती वाले और लगभग दो सौ चलंत रोगियों की हो गई। इसके अलावा औरतें और सयानी लड़कियाँ भी थीं जो सभी प्रकार से नंगी थीं।सर्वाधिक प्रतिष्ठित घरों की महिलाएं भी इस भयंकर दु:खद अनुभव से गुजरी थीं।एक अधिवक्ता की पत्नी जब अस्पताल में आई तब वस्तुतः उसके शरीर पर कुछ भी नहीं था।पुरुष और महिला हताहतों की संख्या बराबर थी।हताहतों में एक सौ घायल बच्चे थे।
* शेखपुरा में 26 अगस्त की सुबह सरदार आत्मा सिंह की मिल में करीब सात आठ हजार गैर मुस्लिम शरणार्थी शहर के विभिन्न भागों से भागकर जमा हुये थे। करीब आठ बजे मुस्लिम बलूच मिलिट्री ने मिल को घेर लिया।उनके फायर में मिल के अंदर की एक औरत की मौत हो गयी।उसके बाद कांग्रेस समिति के अध्यक्ष आनंद सिंह मिलिट्री वालों के पास हरा झंडा लेकर गये और पूछा आप क्या चाहते हैं। मिलिट्री वालों ने दो हजार छ: सौ रुपये की मांग की जो उन्हें दे दिया गया।इसके बाद एक और फायर हुआ ओर एक आदमी की मौत हो गई। पुन: आनंद सिंह द्वारा अनुरोध करने पर बारह सौ रुपये की मांग हुयी जो उन्हें दे दिया गया। फिर तलाशी लेने के बहाने सबको बाहर निकाला गया।सभी सात-आठ हजार शरणार्थी बाहर निकल आये।सबसे अपने कीमती सामान एक जगह रखने को कहा गया।थोड़ी ही देर में सात-आठ मन सोने का ढेर और करीब तीस-चालीस लाख जमा हो गये।मिलिट्री द्वारा ये सारी रकम उठा ली गई।फिर वो सुंदर लड़कियों की छंटाई करने लगे।विरोध करने पर आनंद सिंह को गोली मार दी गयी।तभी एक बलूच सैनिक द्वारा सभी के सामने एक लड़की को छेड़ने पर एक शरणार्थी ने सैनिक पर वार किया।इसके बाद सभी बलूच सैनिक शरणार्थियों पर गोलियाँ बरसाने लगे।अगली पांत के शरणार्थी उठकर अपनी ही लड़कियों की इज्जत बचाने के लिये उनकी हत्या करने लगे।
* 1अक्टूबर की सुबह सरगोधा से पैदल आने वाला गैर मुसलमानों का एक बड़ा काफिला लायलपुर पार कर रहा था।जब इसका कुछ भाग रेलवे फाटक पार कर रहा था अचानक फाटक बंद कर दिया गया।हथियारबंद मुसलमानों का एक झुंड पीछे रह गये काफिले पर टूट पड़ा और बेरहमी से उनका कत्ल करने लगा।रक्षक दल के बलूच सैनिकों ने भी उनपर फायरिंग शुरु कर दी।बैलगाड़ियों पर रखा उनका सारा धन लूट लिया गया।चूंकि आक्रमण दिन में हुआ था , जमीन लाशों से पट गई।उसी रात खालसा कालेज के शरणार्थी शिविर पर हमला किया गया। शिविर की रक्षा में लगी सेना ने खुलकर लूट और हत्या में भाग लिया।गैर मुसलमान भारी संख्या में मारे गये और अनेक युवा लड़कियों को उठा लिया गया।
* अगली रात इसी प्रकार आर्य स्कूल शरणार्थी शिविर पर हमला हुआ। इस शिविर के प्रभार वाले बलूच सैनिक अनेक दिनों से शरणार्थियों को अपमानित और उत्पीड़ित कर रहे थे।नगदी और अन्य कीमती सामानों के लिये वो बार बार तलाशी लेते थे। रात में महिलाओं को उठा ले जाते और बलात्कार करते थे। 2अक्टूबर की रात को विध्वंश अपने असली रूप में प्रकट हुआ।शिविर पर चारों ओर से बार-बार हमले हुये।सेना ने शरणार्थियों पर गोलियाँ बरसाईं। शिविर की सारी संपत्ति लूट ली गई।मारे गये लोगों की सही संख्या का आकलन संभव नहीं था क्योंकि ट्रकों में बड़ी संख्या में लादकर शवों को रात में चेनाब में फेक दिया गया था।
* करोर में गैर मुसलमानों का भयानक नरसंहार हुआ। 7 सितंबर को जिला के डेढ़ेलाल गांव पर मुसलमानों के एक बड़े झुंड ने आक्रमण किया।गैर मुसलमानों ने गांव के लंबरदार के घर शरण ले ली। प्रशासन ने मदद के लिये दस बलूच सैनिक भेजे। सैनिकों ने सबको बाहर निकलने के लिये कहा।वो ओरतों को पुरूषों से अलग रखना चाहते थे। परंतु दो सौ रूपये घूस लेने के बाद औरतों को पुरूषों के साथ रहने की अनुमति दे दी। रात मे सैनिकों ने औरतों से बलात्कार किया।9 सितंबर को सबसे इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया। लोगों ने एक घर में शरण ले ली। बलूच सैनिकों की मदद से मुसलमानों ने घर की छत में छेद कर अंदर किरोसिन डाल आग लगा दी।पैंसठ लोग जिंदा जल गये।
यह लेख तो केवल कुछ चुनिंदा विस्मृत घटनाओं का संकलन हैं। पाकिस्तान के पंजाब में तो प्राय: हर हिन्दू-सिख के घरों मैं यह मौत का तांडव 1947 में हुआ था। हिन्दू तो सदा से ही अपनी पीड़ा भूलकर मानव मात्र के हित के लिये संघर्ष करता रहा है। पिछले 1200 वर्षों से लगातार अराजकता और मतान्ध संकीर्णता को झेलते आये हैं।
— अरुण लवनिया