राज्यपाल राम नाइक के कारण राज्यपाल पद को मिली नयी गरिमा
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रामनाईक अपने कार्यकाल के चार वर्ष पूरे कर रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी युग के नेता व उनके मंत्रिमंडल में पेट्रोलियम जैसे महत्वपूर्ण विभागों का सफलतापूर्वक संचालन करने वाले राज्यपाल राम नाईक ने अपने दायित्व का निर्वाहन करते समय कई अविस्मरणीय सराहनीय कार्य किये हैं जिन्हें सदा याद किया जायेगा। 84 वर्ष की अवस्था में भी प्रदेश के राज्यपाल जिस ऊर्जा व मनोबल के साथ संवैधानिक दायित्वों के साथ बिना किसी विवाद तथा भेदभाव के अपने कार्यकाल को पूरा कर रहे हैं। वह सभी राज्यपालों के लिए एक परम उदाहरण भी हो सकता है। देश के विभिन्न राज्यों के राज्यपाल किसी न किसी विवाद में फंस जाते हैं, भले ही उनके निर्णय सही होते हों। वे राजनैतिक व दलगत भावना में विवादित जरूर हो जाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक अभी तक विवादित विवादों से काफी दूर है।
राज्यपाल नाईक पूरी तरह से भारतीय संस्कृति व परम्परा के संवाहक व संरक्षक भी बने हुये हैं। मराठी भाषी होते हुए भी उन्हें हिंदी, अंग्रेजी व संस्कृत भाषाओं का अद्भुत ज्ञान है तथा वे कठिन से कठिन बातों को बेहद आसान भाषा में जनता के बीच रखने की क्षमता रखते हैं तथा रखते भी हैं। कई कार्यक्रमों में राज्यपाल के भाषणों को सुनकर कुछ न कुछ सीखने को अवश्य मिलता है। राज्यपाल राम नाईक की पुस्तक चरैवेति-चरैवेति आज के युवाओं के लिए ही नहीं अपितु पूरे समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गयी है। यह पुस्तक हर युवा व अपने अपने कर्मक्षेत्र में काम करने वाले हर व्यक्ति व महिला को पढ़नी चाहिये। राज्यपाल की यह पुस्तक एक प्रकार से आधुनिक गीता ही है तथा युवाओं तथा समाज को ‘लगातार चलते रहो, कर्म करते रहो’ की प्रेरणा देती है। राज्यपाल अपने कई संस्मरणों में बता चुके हैं कि उन्हें भी कैंसर हुआ था, लेकिन वह प्रतिदिन 13 बार सूर्य नमस्कार व योग करते रहे, जिसके कारण उन्होंने कैंसर पर विजय प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। राज्यपाल आज भी जिस प्रकार से 84 वर्ष की अवस्था में काम कर रहे हैं तथा उनमें किसी भी प्रकार की अभी कोई कमजोरी नहीं दिखलायी पड़ रही, यह बात भी किसी भी युवा बुजुर्ग के लिए कम प्रेरणादायक नहीं है।
राज्यपाल राम नाईक प्रदेश के ऐसे राज्यपाल हैं जिनकी तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी पटरी बैठती थी और वे उनको विभिन्न मसलों पर अपनी राय भी दिया करते थे, भले ही वे तत्कालीन सपा सरकार और मुख्यमंत्री की विचारधारा के विपरीत रहते हों। राज्यपाल की सक्रियता किसी भी सूरत में कम नहीं हो रही। 1458 दिनों में प्रतिदिन औसतन 20 लोगों से उनकी मुलाकात होती रही। प्रतिदिन औसतन एक कार्यक्रम में शामिल हुए तथा राज्यपाल ने साल में मिलने वाले 20 अवकाशों का इस्तेमाल भी कम किया। पहले साल 10 और दूसरे वर्ष नौ दिन की छुटटी पर रहे। तीसरे व चैथे साल राज्यपाल ने कोई अवकाश नहीं लिया।
राज्यपाल समय-समय पर सरकार व प्रशासन का मार्गदर्शन व निर्देशन अपने भाषणों विचारों तथा पत्रों के माध्यम से करते रहे हैं। पिछली सरकार ने तो उनके विचारों का उतना अनुपालन नहीं किया जितना कि वर्तमान में मुख्यमत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार कर रही है। आज प्रदेश के राज्यपाल इस बात पर प्रसन्नता जाहिर कर रहे हैं कि उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को यूपी के स्थापना दिवस समारोह का आयोजन करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन वह प्रस्ताव उन्होंने नहीं स्वीकार किया था, जिसे अब स्वीकार किया गया है। राज्यपाल का कहना है कि यूपी स्थापना दिवस समारोह से यूपी की अस्मिता जागृत हुई है।
अभी तक प्रदेश के सर्वांगीण विकास के इतिहास में यह विषय अछूता था। देश के अधिकांश राज्य अपना गौरवशाली स्थापना दिवस समारोह धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन यूपी को यही नहीं पता था कि उसका अपना जन्म कब हुआ था। यहां पर केवल नवाबी संस्कृति पर ही राजनीति होती रहती थी। यूपी के इतिहास को काफी तोड़ा मरोड़ा गया है। स्थापना दिवस के सहारे पूरे देशभर के लोगों की नजर यूपी पर गयी है। यूपी स्थापना दिवस के माध्यम से यहां की संस्कृति, परम्परा तथा पर्यटन को सुरक्षित व संरक्षित तो किया जा सकता है, साथ ही साथ पर्यटन को पर्याप्त तरीके से विकसित करने में भी सफलता मिलेगी। आज प्रदेश की जनता भी अपने आप को समझ सकती है तथा जान सकती हैे कि उनके अपने राज्य में क्या -क्या खास है। यह राज्यपाल की पहल का ही परिणाम है कि आज यूपी और महाराष्ट्र के लोग एक दूसरे को अच्छी तरह से समझ पा रहे हैं। यूपी में महाराष्ट्र दिवस तथा मुम्बई में यूपी स्थापना दिवस का समारोहों का आयोजन राज्यपाल राम नाईक के विचार मंथन का ही परिणाम है।
इस प्रकार के आयोजनो से उप्र के लोगों की महाराष्ट्र में जो नकारात्मक छवि बनी हुई है उसमें कुछ हद तक कमी आयेगी। प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी है तथा वह इस नाते विश्वविद्यालयों की समस्त गतिविधियों पर भी पैनी निगाह रखते हैं। राज्यपाल की पहल पर विश्वविद्यालयों में दीक्षांत समारोहों का आयोजन हो रहा है। शैक्षिक कैंलेंडर पटरी पर आने के साथ-साथ नकल पर भी रोक लगाने में सफलता मिली है। विश्वविद्यालयों में लंबे समय से शिक्षकों के पद खाली थे, उन्हें भरने की प्रक्रिया शुरू हुई है। लेकिन जिन विश्वविद्यालयों में अनियमिततायें हुई उन पर कार्यवाही भी हुई है।
राज्यपाल का यह साफ मानना है कि कुछ विश्वविद्यालयों मसलन लखनऊ, बीएचयू, एएमयू, इलाहाबाद विवि, लखनऊ के भीमराव अम्बेडकर में हुई घटनायें चिंता का विषय हैं। इसमें सुधार की आवश्यकता है तथा सभी पक्षों को समझदारी से, संयम से काम लेना चाहिये।
राज्यपाल राम नाईक का स्पष्ट कहना है कि अभी भी अपराध नियंत्रण पर बहुत काम होना है। उनका कहना है कि वह राजनैतिक रंग में नहीं रंगे हैं, अपितु पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हर बयान राजनैतिक रंग में रंगे होते हैं, इसलिए हम उनकी बातों का कोई जवाब नहीं देते हैं। अभी हाल ही में जब पूर्व मुख्यमंत्रियों से बंगले खाली करवाये जा रहे थे तब बंगला खाली करने के बाद जांच के दौरान पता चला कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मकान का सारा सामान यहां तक कि नलों की टांेटियां तक उठा ले गये हैं तथा यह मामला सोशल मीडिया में भी खूब छाया रहा था औेर टीवी चैनलों में खूब जमकर बहस हो रही थी तथा यह सवाल उठाये जा रहे थे कि आखिर प्रदेश की बहुमत वाली बीजेपी सरकार अखिलेश यादव के खिलाफ सरकारी संपत्ति को नष्ट करने के मामले में कड़ी कार्यवाही क्यों नहीं कर रही। तब राज्यपाल ने स्वयं मामले को संज्ञान लेते हुए पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ कड़ी जांच करने के लिए पत्र लिखा, जिस पर अभी कार्यवाही चल रही है।
वैसे भी प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक बहुत मिलनसार, उदार हृदय वाले तथा विद्वान व्यक्ति हैं। आज उनके कारण राज्यपाल के पद को एक नयी उमंग तथा ऊर्जा मिली है। अब यह कोई नहीं सकता कि राज्यपाल का पद किसी विशेष दल का गुलाम होता है। राज्यपाल राम नाईक के दरबार में सभी लोगों की आसान पहुंच है। राजभवन के दरवाजे आज सबके लिए खुले हुए हैं। राज्यपाल स्वयं भी पांच वर्षों के कार्यकाल से संतुष्ट हैं। उनका कहना है कि यूपी को सर्वोत्तम प्रदेश बनाने का संकल्प है मेरा। मैं अपने अंतिम पांचवें वर्ष भी उसी प्रकार से कार्य करता रहूंगा जिससे कि उप्र सर्वोत्तम प्रदेश बन जाये।
— मृत्युंजय दीक्षित