कविता

हम फिर मिलेंगे

हम फिर मिलेंगे
कहीं न कहीं
किसी न किसी रूप में
हम फिर मिलेंगे ….
गर बनोगे तुम आकाश
मैं धरती बन अंतिम छोर तक
तुमसे मिलने की करती रहूंगी कोशिश
झुकना होगा तुम्हें भी
मुझे पाने की खातिर
हम मिलेंगे वहां
जहां न दिखे पास से
किसी को हमारा मिलन
बस महसूस कर सके, समझ सके
हमारी पीड़ा, हमारा वियोग
और हमारा प्रेम
हम फिर मिलेंगे…..
तुम बन जाना पपीहा
और मैं सावन की वो पहली बूंद
जिसे पाने को लालायित रहना हर पल
उस एक बूंद से मिट जाए
जन्मो की प्यास….
हम फिर मिलेंगे….
जब तुम मृग बन मुझे पाने
भटकोगे वन-वन में
मैं कस्तूरी बन महकूँगी तुम में ही
और देती रहूंगी अपनी खुशबू हर पल
हम फिर मिलेंगे
कभी न बिछड़ने के लिए
हम फिर मिलेंगे…..

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]