फरेब
क्या कहे तुम से की दिल भी ना जाने,
मोहब्बत तो हमने भी की पर तुम ना जाने,
तेरी गलियों में आकर भी ना आ सकी,
क्योकी दिल तो हम भी बाजार मे ही बेच आये !
दिल बेचते वक़्त तेरा खयाल ना आया ,
ख्याल आया तो उस धोखे का जो तूने,
हमे इसी भरे बाज़ार में दिया था !
तेरे धोखे को उस दुकान वाले ने भी देखा
जब तू हमे छोड़ कर जा रहा था ।
किस तरह लब्जों में बयान करे तेरे धोखे को
क्योकी तेरे इस फरेब को लिखने
के लिये हमारे पास ना शब्द ना वक़्त !
लेखिका – चाँदनी सेठी कोचर ( दिल्ली )
युवा लेखिका