पर्यावरण के ये वन प्रहरी,
सुंदर धरती है यह देन।
हरा-भरा जीवन ये देते;
दृश्य सुहाने देखते नैन।।
वन हमारे खुले खजाने,
दुःख न देना इन्हें अन्जाने।
यदि न जाने अब भी इनको;
तो•••
दुःख भोगेंगे सभी सयाने।।
वास जहां है नर-नारायण का,
मेल-मिलन है प्रकृति-पुरुष का।
ऐसे वनस्पति जीव-जगत् का;
क्षेत्र वन यह नाम है उस का।।
पास-पडोस प्रकृति की रक्षा,
काम यही है सबसे अच्छा।
जैव-विविधता की यह चर्चा;
वन रक्षा है सबकी इच्छा।।
जड़-चेतन व कीट-पतंगा,
यही हमारी जैव-विविधता।
रक्षित-विकसित होवे जीवन;
देन है इसकी जलवायु शुद्धता।।
यदि न रहेंगे ये वन प्रहरी,
रहें सुखी कैसे गांव शहरी।
सोच यदि न रही गहरी;
तो•••
आंख-कान से होंगे सब बहरी।।
राष्ट्र-द्रोह विषपान का,
करते तस्कर हैं यह काम।
जीव रक्षा के बदले अब;
वन भक्षक है इनका नाम।।
चुनौती आज वन्यजीव संरक्षण की,
चुनौती है राष्ट्रीय संपत्ति सुरक्षा की।
पर्यावरण रक्षा के अनन्य प्रहरी की;
बड़ी चुनौती जीवन अस्तित्व रक्षा की।।
यही हमारी सांस हैं,
यही भविष्य की आस।
लें संकल्प सभी यह;
कि-
कभी न करेंगे इनका नाश।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट “स्नेहिल”