राजनीतिलेख

कांग्रेस को आत्ममंथन की जरूरत

2014 के आम चुनाव में राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखते ही नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया। और कांग्रेस ने मोदी के इस नारे का जमकर माखौल उड़ाया। पर जैसे ही आम चुनाव के नतीजे आएं सब हक्के-बक्के से रह गए; क्योंकि सत्तर सालों में कांग्रेस की यह सबसे बड़ी दुर्गति थी। जब 543 सदस्ययी लोकसभा में कांग्रेस के बस 44 सदस्य ही लाज बचाने में सफल हो पाए थे। फिर क्या था इस आम चुनाव के बाद हुए लगभग सभी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कांग्रेसमुक्त भारत के आह्वान को देश की जनता ने कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया और फिर देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का दंभ भरनेवाली कांग्रेस अपना आधार बचाने के लिए तरसने लगी। आज हालात ऐसे हैं कि देश की सत्ता पर सबसे अधिक समय तक काबिज रहनेवाली पार्टी अपना जमीन बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है।

आज कांग्रेस की स्थिति इतनी दयनीय है कि उसे राजनीति में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए छोटी-छोटी प्रादेशिक पार्टियों का पिछलग्गू बनकर रहना पड़ रहा है। और इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कर्नाटक की वर्तमान सरकार जिसमें कांग्रेस बड़ी पार्टी होने के बावजूद जेडीएस को समर्थन देने को बाध्य है। यही हाल बिहार के विधानसभा चुनाव में भी रहा, जहां कांग्रेस को महागठबंधन के नाम पर चंद सीटों पर ही समझौता करना पड़ा। और अब तो धीरे-धीरे कांग्रेस की वह बचीखुची जमीन भी खिसक रही है। कांग्रेस अब हासिए पर चली गई है और संभवतः यही वजह है कि उन्हें देश के संविधान और लोकतंत्र पर खतरा नजर आ रहा है, जबकि वास्तव में कांग्रेस खुद ही कई बार देश के लोकतंत्र से छेड़छाड़ कर चुकी है और उसे आज उसीका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। ऐसे में अगर कांग्रेस को फिर से सशक्त होना है तो उन्हें आत्ममंथन की जरुरत है। राहुल गांधी को अपनी पिछली हारों से सीख लेते हुए हार के कारणों का पुणः निरीक्षण करना होगा और समझने की कोशिश करनी होगी कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है जिस कारण कांग्रेस लगातार हार रही है और अपना आधार बचाने को मजबूर है। जबकि कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है और उसे महात्मा गांधी, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री जैसे कर्मठ और लोकप्रिय नेताओं के नाम का सहारा है। ऐसे में सिर्फ एक नाम उनपर इस कदर हावी हो गया है कि वे अपना आधार बचाने के लिए अपनी सर्वशक्ति का प्रयोग करने को मजबूर हैं और इसके बावजूद उन्हें जबरदस्त मुँह की खानी पड़ रही है।

भ्रष्टाचार से समझौता:

यहां कांग्रेस को यह समझना होगा कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है जिसने मोदी के कांग्रेसमुक्त भारत के नारे को इतना बल दिया। आज कांग्रेस मोदी के नाम से परेशान है जबकि वास्तव में यह उसीके गुनाहों का प्रतिफल है कि एक विराट इतिहास का हिस्सा रही पार्टी आज जनता के दिलों से उतर गई है। कांग्रेस आज जिस गुनाह की सजा काट रही है वह है भ्रष्टाचार। देश में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। देश का हरेक नागरिक फिर चाहे वह अमीर हो या गरीब, पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़ आज सभी भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं। लोगों को अपना छोटे से छोटा काम करवाने के लिए बाबूओं को रिस्वत देनी पड़ती है। और कहीं ना कहीं जनता इसके लिए कांग्रेस को ही कसूरवार मानती है। क्योंकि देश में सबसे अधिक लगभग साठ सालों तक कांग्रेस का ही शासन रहा है और इस दौरान कांग्रेस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आंख-मूंदे बैठी रही,बल्कि खुद कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने ही राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। जबकि पिछले चार वर्षों से जनता को भ्रष्टाचार के इस सित्तम से थोड़ी राहत मिली है। और देश में पिछले चार सालों से किसी भी मंत्री पर भ्रष्टाचार के कोई आऱोप नहीं लगे हैं। यही वजह है कि लोग अब चुनावों में कांग्रेस को दरकिनार कर रहें हैं।

जात-पात और तुष्टिकरण की राजनीति :

भ्रष्टाचार के साथ ही कांग्रेस की दूसरी सबसे बड़ी समस्या है सेकुलरिज्म के नाम पर धर्म और जात-पात की राजनीति। देश के हालात अब धीरे-धीरे बदल रहें हैं और सोशल मीडिया की मदद से लोग और अधिक जागरूक हो रहें हैं, ऐसे में तोड़ो और राज करो नीति सफल नहीं हो सकती। और कांग्रेस के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। तभी अपनी ऊलजलूल टिप्पणियों से जनता का विश्वास खो रहे नेताओं में सर्वाधिक नेता कांग्रेस से हैं। और अपने इन्हीं बड़बोले नेताओं की वजह से कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। फिर चाहे वह मणिशंकर अय्यर हो, या हिंदू पाकिस्तान का नारा देने वाले शशि थरूर या फिर काश्मीर के बहाने अलगाववादियों और पाकिस्तान का समर्थन करनेवाले गुलाम नबी आजाद और सैफुद्दीन सोज। कांग्रेस के इन बयान बहादुर नेताओं ने अपने हालिया बयानों से कांग्रेस की नैया में एक बड़ा सा छेद कय दिया है जिसका परिणाम कांग्रेस को फिर चुनावों में भुगतना पड़ेगा। और ऐसी स्थिति में कांग्रेस को चाहिए कि वो अपने नेताओं पर लगाम कसे और सभी नेताओं को विवादित बयानों से दूर रहने का फरमान जारी करे। और इसके बावजूद अगर कोई नेता किसी तरह की ऊलजलूल बयानबाजी करे तो पार्टी को तुरंत ऐसे नेता पर कार्रवाई करनी चाहिए।

2014 के बाद से हो रही कांग्रेस की हार की एक बड़ी वजह उसकी तुष्टिकरण की नीति भी रही है, जिसने आज कांग्रेस को हासिये पर ला खड़ा किया है। दरासल हिंदू बहुसंख्यक राष्ट्र में सेकुलरिज्म के नाम पर कांग्रेस ने लंबे समय से मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपना रखी है जिससे समय समय पर देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं को भारीभरकम नुकसान उठाना पड़ा है। आज यही कारण है कि मोदी की हिंदुत्ववादी छवि ने देश के बहुसंख्यकों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित किया है। कांग्रेस ने अपनी तुष्टिकरण की नीति के अन्तर्गत सदैव एक धर्मविशेष को ही महत्व दिया है, जबकि भारत में अल्पसंख्यक के तौर पर सिख,जैन,बौद्ध जैसे अनेकों धर्म के लोग वास करते हैं और ऐसी स्थिति में कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता की नीति सवालों के घेरे में है जिसका पूरा फायदा चुनावों में नरेन्द्र मोदी ने उठाया है। मोदी एक सक्रिय राजनेता हैं और वे अपने विरोधियों की हरेक गलती को भुनाना जानते हैं तभी उन्होंने राहुल गांधी के “कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है” वाले बयान को बखूबी भुनाना आरंभ कर दिया है और इसका परिणाम भी अब कांग्रेस को ही भुगतना पड़ेगा। ऐसे में अगर कांग्रेस फिर से राष्ट्रीय राजनीति में वापसी चाहती है तो उसे अपनी धर्मनिरपेक्षता की नीति को बिना किसी भेदभाव के आगे बढ़ाना होगा। कांग्रेस को बिना किसी हिचक के मुसलमानों की गलत नीतियों का विरोध करना होगा और जनता के मन में यह विश्वास जगाना होगा कि कांग्रेस किसी धर्म या संप्रदाय विशेष की पार्टी नहीं है अपितु कांग्रेस देश की जनता को समर्पित एक स्वच्छ विचारधारावाली पार्टी है। जिसके लिए सभी धर्म-पंथ-संप्रदाय एक समान है और वो सभी के अधिकारों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर है।

नकरात्मक राजनीति का प्रभाव:

कांग्रेस को अब मोदी को हराने के लिए अपने राजनैतिक व्यवहार में भी परिवर्तन लाना होगा। समय की मांग को समझते हुए अब कांग्रेस को सकरात्मक राजनीति की ओर कदम बढ़ाना होगा। आज कांग्रेस और मोदी में यही मुख्य अंतर है कि मोदी अपने विकास के एजेंडे पर आगे बढ़ रहें हैं तो वहीं कांग्रेस अपनी खोई जमीन तलासने की हड़बड़ी में नकरात्मक राजनीति को आगे बढ़ा रही है। जेएनयू मुद्दे में अफजल गैंग का समर्थन करना, काश्मीर में सैन्य कार्रवाई के विरुद्ध बयानबाजी करना, सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगना, बात बात पर प्रधानमंत्री को कोसना और कई देशहित के कार्यों में सिर्फ सरकार के विरोध के नाम पर सदन और सरकार के कार्यों में बाधा उत्पन्न करना अब कांग्रेस को ही भारी पड़ता नजर आ रहा है। क्योंकि इलैक्ट्रोनिक और सोशलमीडिया के जमाने में लोग अब सीधे तौर पर राजनीति से जुड़े मुद्दों को देखने-समझने लगे हैं। इतना ही नहीं बल्कि अब तो लोग सोशल मीडिया के पोस्टो से प्रभावित होकर भी वोट डालने लगे हैं; ऐसी स्थिति में सिर्फ नकारात्मक राजनीति के सहारे जनता को रिझाना बहुत आसान नहीं है। अतः अब कांग्रेस को चाहिए की वो सरकार की नाकामियों को उजागर करते हुए देशहित के मुद्दों पर सकरात्मक राजनीति करे और जहाँ भी आवश्यक हो वह सरकार के साथ खड़ी हो जिससे जनमानस के मन में कांग्रेस की सोच और विचारधारा का सकरात्मक असर हो और देश की जनता एक बार फिर से कांग्रेस पर अपना विश्वास जाहिर कर सके।

गठबंधन का दबाव:

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को अब अपने सहयोगियों से भी सावधान रहना होगा। कांग्रेस को समझना होगा कि कोई भी छोटीमोटी पार्टी गठबंधन के नाम पर कांग्रेस को लॉलीपॉप न थमा दे। फिर चाहे वह बिहार हो, उत्तरप्रदेश हो या फिर कोई अन्य राज्य। इन सभी राज्यों में कांग्रेस को प्रादेशिक पार्टियों का पीछलगु बनने के वजाय अपने आपको सशक्त करने की कोशिश करनी चाहिए। प्रादेशिक पार्टियों के शर्तों पर गठबंधन करने के स्थान पर एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर उसे सबका नेतृत्व करने के लिए आगे आना होगा।

कांग्रेस को अब तोड़ने-फोड़ने की राजनीति से बाहर आकर देशहित की राजनीति को आगे बढ़ाना होगा। उसे ‘भारत प्रथम’ नारे के साथ सभी को एक डोर से बांधते हुए आगे बढ़ना होगा तब जाकर कहीं उसे मोदी-शाह और भारतीय जनता पार्टी की गलत नीतियों का फायदा मिल सकेगा और कांग्रेस पार्टी फिर से उभरकर देश की राजनीति में अव्वल नम्बर पर आ सकेगी।

मुकेश सिंह
(लेखक युवा स्तंभकार हैं)

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl