कविता

ख़्वाब

चाँदनी रात में
वो बैठा है
झील के किनारे
देख रहा है
खुली आँखों से
ख़्वाब…
बह रही है
ठंडी-ठंडी हवा
पर शांत है झील
और शांत है वो भी…
खोया हुआ है
महबूब की यादों में
इसीलिए तो कोसों दूर है
उसकी आँखों से नींद
पर उसे सुकून है
जुदाई में भी मीठा-मीठा दर्द है
तभी एक ठंडा झोका हवा का आता है
और वो ख़्वाबों की दुनियां से बाहर आता है
अब वो सिकुड रहा है
उसके दाँत किट-किट की आवाज़ कर रहे हैं
क्योंकि ख़्वाब टूट चुका है |
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111