गीतिका/ग़ज़ल

 “गज़ल”

वज़्न- 221 1222 221 1222, काफ़िया- अ, रदीफ़ आओगे

आकाश उठाकर तुम जब वापस आओगे

अनुमान लगा लो रुक फिर से पछताओगे

हर जगह नहीं मिलती मदिरालय की महफिल

ख़्वाहिश के जनाजे को तकते रह जाओगे॥

पदचाप नहीं सुनता अंबर हर सितारों का

जो टूट गए नभ से उन परत खिलाओगे॥

इक बात सभी कहते हद में रहना अच्छा

नजदीक हिमालय के जाकर हिल जाओगे॥

अहसान करो इतना अपने मन के मालिक

उड़ना मत बे-पर तुम गिर कर तड़फाओगे॥

सुंदर लगता सूरज पर रात चाँदनी की

खोकर इस आभा को क्या तुम रह पाओगे॥

गौतम जल जाएगी रौनक इस चाहत से

मुँह हाथ छुपा करके क्या दर्द जिलाओगे॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ