अनोखा सावन
” दो तीन दिन से आप बहुत खुश लग रहे हो , कुछ खास बात है क्या”??
” नहीं, नहीं तो मैं तो हमेशा जैसा रहता हूँ वैसा ही हूँ”।
” अच्छा सुनो ,देखो मैं कितना भूलने लगा हूँ। मुझे इस इतवार को बाहर जाना है । किसी प्रोग्राम में “।
” कहाँ जाना है “?
” अकेले जाना होगा आपको क्योंकि मुझे भी हमारी महिला मंडल के सावन महोत्सव में जाना है “।
” तुम और तुम्हारी मण्डली ……… ठीक तुम वहां जाना”।
मैं बाहर जा रहा हूँ।
” यार देख मुझे मेरी फेसबुक की महिला मित्र जिसको मैं बेटी बोलता हूँ मुझे अपने मोहल्ले में सावन उत्सव में बुलाया है “।
” अरे , दिनकर तुम कुछ तो अपनी उम्र का लिहाज कर बेटी बोल कर उसको बहला रहा है। सम्भल जा नही तो एक दिन कहीं लेने के देने न पड़ जाए “।
” तू भी क्या बात करता है । आज तक तेरी भाभी को कुछ मालूम नहीं हुआ । बहुतों को बहला लिया तो ये नई हैं वो क्या है”।
” दिनकर तुम समझ नहीं रहे । क्या कहूं तुम समझदार हो”।
इतवार वाले दिन दोनों पति पत्नी अपनी अपनी जगह जाने के लिए निकल गए। दिनकर जी महोत्सव वाली जगह पहुंच गए।
फेसबुक वाली बेटी जिसको वो पिंकी बोलते है । वास्तविक नाम पंखुड़ी है। बड़े उत्साह से मिले उसको गले लगाया , खूब आशीर्वाद दिया । उसकी खूबसूरती की तारीफ की। पंखुड़ी उनको अपनी दूसरी मित्रों से मिलवाती है । इत्तफाक से उनमें भी कुछ वो निकली जिनको वो पहले बेटी बना चुके थे।
अंत में वो पंखुड़ी की एक खास दोस्त जिसको भी वो बेटी ही कहते है । मिले भी वो पंखुड़ी के माध्यम से ही । इनबॉक्स में वो कितनी बार उससे बात करने की कोशिश कर चुके है पर वो ज्यादा बात नही करती । दिनकर जी ने तो नई दोस्त बेटी से उसकी फोटो भी मांग लिए पर उनको मिली नही। आज तो उनको उससे रूबरू होने का मौका मिला। जिसको वो किसी भी किमत पर खोना नहीं चाहते है।
उनसे मिलने पर उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वो उनकी नई दोस्त और कोई नही उनकी ही पत्नी है। उनकी पत्नी को अपने पति की इस हरकत पर विश्वास हो गया । वहां आयी सभी की शिकायत यही थी कि ये सबको बेटी बेटी बोल इनबॉक्स में खूब बातें करते फ़ोटो मांगते , अकेले मिलने का कहते। चलो देर नही करो मैं तुम सब के साथ हुँ । आज इनका सावन बरसा दो जम कर। इन्होंने तुम सब को तंग किया आज तुम करो । जो तुम कहोगी वो ये करेंगे ।
उनसे डांस करवाया, गाना गवाया, अंत में उनको बोलना पड़ा ” मुझे माफ़ करो ।आगे से मैं इस तरह का कुछ नही करूँगा । बेटी को बेटी मानूँगा । मुझे नही चाहिए सावन की मस्ती । मेरे सावन हो गए “।
गये वो वहाँ शान से आये शर्म से सर नीचा किये ।
— सारिका औदिच्य