नारी सशक्तिकरण अभियान की सजग प्रहरी : शोभा सचान
कहा जाता है प्रतिभा किसी के परिचय की मोहताज नहीं होती। प्रतिभा को अधिक समय तक दबाया या छुपाया भी नहीं जा सकता और प्रतिभा एक दिन निखर कर आती है, तो वो कामयाबी के शिखर पर पहुंच जाती है।
ईश्वर प्रकृति का संतुलन बनाये रखने के लिए सांसारिक जीवन में भी कुछ ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं भेजते हैं। जो अपनी कला और प्रतिभा से समाज को एक नई दिशा एवं सोच दे सकें, ताकि समाज को उनसे प्रेरणा मिल सके। ऐसी ही विलक्षण प्रतिभा है शोभा सचान ।
शोभा सचान भी ऐसी शख्सियत है जिनका नाम साहित्य क्षेत्र में बड़े आदर और सम्मान से लिया जाता है। उन्होंने अपनी साहित्यिक साधना से अपनी लेखनी के दम पर राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक विशिष्ट पहचान कायम की। आज उनकी रचनाएं समाज के लिए प्रेरणादायक सिद्ध हो रही है। इनकी रचनायें समकालीन, श्रृंगार, देश प्रेम, दहेज प्रथा, नारी उपेक्षा एवं शोषण आदि विषयों पर आधारित होती है।
साहित्यकार, लेखक व कवयित्री शोभा सचान का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में डॉ. जेपी सचान के घर रमा सचान के आंचल में हुआ। शोभा चार भाई बहनों में सबसे छोटी होने के कारण पूरे परिवार की चहेती रही। स्नातक तक शिक्षा लेने के पश्चात 1991 में विवाह बंधन में बंध कर दिल्ली आ गई।
ससुराल में आने पर अपनी लेखन कला को विराम देकर एक आदर्श नारी, संस्कारी बहू व पत्नी का दायित्व बखूबी निभाते हुए घर परिवार के कार्यों में जुट गई। 1994 में पुत्र व 1996 में बिटिया के जन्म होने पर एक ममतामयी माँ की जिम्मेदारी को समझते हुए, उनके लालन ,पालन व शिक्षा के दायित्वों को निभाया। शोभा जी के अनुवांशिक गुणों का असर बेटे पर भी हुआ। बेटा पारस देहरादून से बी.टेक की है। उसने तृतीय वर्ष में “इल्ड्रिच माइंड ” बुक लिखी जो Amazon पर 68 देशों में लॉन्च हुई और पारस ने दूसरी बुक “10,000 फ़ीट ओर क्लीमम्बिंग ” लिखी जो 100 देशों में लॉन्च हुई। बिटिया दिल्ली विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म का कोर्स कर रही है। कहा जाता है इश्क और हुनर या कला को अधिक समय तक छुपाया या दबाया नहीं जा सकता। बच्चे बालिग होते ही शोभा सचान में काव्य के भाव जागृत होने लगे और जब वे महिलाओं पर आये दिन हो रहे अत्याचारों को देखती तो मन बेचैन और व्यथित होने लगा। सचान ने नारी अत्याचारों के विरुद्ध जनमानस में क्रांति लाने की ठान ली।
इस सोच के साथ नारी को एक शक्ति के रूप जागृत करने का बीड़ा उठाया और एक जुनून व जोश के साथ अपनी कलम से साहित्य के माध्यम से सामाजिक, साहित्यिक मंचों और कार्यक्रमों में अपनी ओजस्वी वाणी व प्रेरक रचनाओं से नारी को एक शक्ति के रूप में प्रेरित करने का अभियान चला रही हैं। उनके प्रयासों से अभियान की सार्थकता भी नजर आने लगी है। शोभा साचान की रचनाओं को जनमानस द्वारा काफी सराहा जाने लगा है। इनकी रचनायें मुख्य रूप से नारी के वर्तमान हालात और उन पर हो रहे अत्याचारों पर केंद्रित होती है। अधिकांश समकालीन रचनायें होती है। इनकी रचनाओं को देश-विदेशों की पत्र -पत्रिकाओं में प्रमुखता से स्थान दिया जा रहा है। उनको साहित्य के साथ साथ सामाजिक कार्यों के लिए भी अनेक सम्मान मिल चुके हैं।
शोभा सचान ने आज की नारियों को एक संदेश देते हुए कहा कि नारी पहले कमजोर और अबला समझने की भावना मन से निकाले और अपने आप को नारी शक्ति के रूप में पहचाने। जो पुरुष नारी का सम्मान करना नहीं जानते हैं। उनको अहसास कराए कि अब देश की नारी जागृत हो गई है। पुरुष अब नारी को अबला समझने की भूल नहीं करे। नारी अब सबला हो गई है।
शोभा सचान की आज की नारी पर एक रचना प्रस्तुत है-
आधुनिक नारी
नारी शब्द की बेड़ी खोल के चलना सीख लिया
चलते चलते शिखरों पर भी चढ़ना सीख लिया
सींच रही है पलके सपने नम सी आँखों के
मन में ठहरी झीलों ने भी बहना सीख लिया
बांध इरादे अपने पक्के धूप की चादर में
पथरीला पथ तपती रेत में चलना सीख लिया
था मुश्किल मंजिल को पाना हार नहीं मानी
मंज़िल तक खुद रास्तों को ले जाना सीख लिया
कोशिश पढ़ने की सबको की पर न समझ सकी
खुद को पढ़कर खुद से खुद को लिखना सीख लिया
झूठी रस्मों की हथकड़ियां अब न पहनेंगे
परों में रंग सुनहरा भरकर उड़ना सीख लिया
नहीं चाहिए भीख दया और करुणा की हमकों
रानी झाँसी के कदमों पर चलना सीख लिया।।
— शोभा सचान
प्रस्तुति — शम्भू पंवार