मित्रता
खून का नही है ,पर प्रेम अनुबंध है ये,
दोस्ती के रिश्ते को नेह से निभाइये।
मीत जो गरीब हो या ,कष्ट में हो,दुख मे हो,
मीत को सुदामा मान,कृष्ण बन जाइये।
ऊँच-नीच,गुरु-लघु,श्वेत-श्याम सब त्याग,
मीत को सनेह निज उर से लगाइये ।
नीर-क्षीर के समान मित्रता ‘दिवाकर’ हो
मीत पे जो आँच आवे खुद जल जाइये ।
© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी