लघुकथा

कपटी बाबा

“इतनी जल्दी आ गई?” माँ ने रेनू से पूछा
“हाँ माँ ! बड़ी मुश्किल से निकल पाई !” रेनू बोलते हुए माँ से लिपटकर रोने लगती है घबराते हुए माँ पूछती है “एैसा क्या हो गया वहाँ पर ?”
माँ मैने आपसे कहा था ना कि इन सब चक्कर में नहीं पड़ना चाहिये परन्तु आप तो अन्धविश्वास के गड्ढे में डूबती जा रहीं थीं। अब अगर मैं सतर्क ना होती तो आज तुम्हारी लाडो यहाँ तुम्हारे सामने … कहते हुए फिर रोने लगती है….माँ उसे अपनी बॉहों में भर लेती है (कभी ना छोड़ने वाली स्थिति में )
माँ उसे पानी पिलाती है कहती है मेरी बहादुर बेटी किसी को भी सबक सिखा सकती है एैसा मेरा विश्वास है ।अब कान पकड़ती हूँ जो मैं दुबारा ऐसी जगह क़दम भी रक्खूँ ! चल हम वहाँ पुलिस लेकर चलते हैं और उसको जेल भेजते हैं ।
माँ मैने तो उसे जेल भी पहुँचा दिया। आप तो मुझे वही छोड़कर आ गईं, मैंने देखा लड़कियें कुछ अज़ीब सा व्यवहार कर रहीं हैं। मेरे कान खड़े हुए और मन से आवाज़ आई ज़रूर दाल में कुछ काला है। वहीं से जाँच–पड़ताल शुरू कर दी। बस फिर क्या था मुझे ऐसा नहीं बनना। बहुत जद्दोजहद के बाद मैं उसका पर्दाफ़ाश करने में सफल हुई और उन सबको भी उसकी क़ैद से छुड़ा दिया।
ऐसे कपटी बाबा अपने प्रवचनों के माध्यम से आप सबके चारों ओर एक जाल बुन देते हैं और आप जैसे लोग उस जाल में फँसते चले जाते हैं जिससे बाहर निकलना नामुमकिन होता है । वो इसी का फायदा उठाते हुए हम जैसी लड़कियों को अपना शिकार बनाते हैं पर वो यह नहीं जानते कि एक ना एक दिन उनको अपने किये की सज़ा ज़रूर मिलेगी क्योंकि हर नारी माँ दुर्गा का रूप भी रखती है !
“यह तो वही बात हो गई कि ‘ सौ सुनार की एक लुहार की’ “ कहते हुए माँ उसे अपने सीने से लगा लेती है !
नूतन (दिल्ली )

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक