कविता – सावन
काहे का सावन रे सखिया,
जब साजन बसे परदेश !
रात बिजुरिया चमक डराये,
जिया मे बने कलेश !!
रिम-झिम-रिम झिम बरसे सावन,
देख नाग-नागिन का रूप!
वो नागन फिर कैसे जिऐ,
जाके घर ना भूप !!
काली बदली,झिगूर की बोली,
मेढक की टर्र-टर्र बोल !
रात-रात भर नैना रोते,
जब सोए खिड़की खोल !!
सखिया सब ताने मिल मारे,
बार-बार हंसे चिढाये !
देख सखी इस बिरहन की नाड़ी,
सखिया ना मर जाये!!
— हृदय जौनपुरी