मन की खिड़की खोलो जी
क्यूँ बैठे हो गुमसुम गुमसुम मन की खिड़की खोलो जी
दिल मे क्या क्या राज़ छिपा है हमसे भी तो बोलो जी
~~
आँसू पीते पीते खारे सागर से हो जाओगे
मुखरित करके दर्द हृदय का इक दिन जी भर रोलो जी
~~
गहन तमस से बाहर आओ उजियारे की बात करो
उम्मीदें आँखों में भरकर सपने नए संजोलो जी
~~
पतझड़ का बीता अब मौसम देखो आया है सावन
आज मिटा संताप हृदय का पानी पानी होलो जी
~~
हुई रात तो गम कैसा कल भोर नवेली आएगी
छँट जाएंगे दुख के बादल सुख से दो पल सोलो जी
~~
बाँह पसारे कब से मंजिल देखो बुला रही तुमको
नज़र लक्ष्य पर रक्खो अपनी इधर उधर मत डोलो जी
~~
झगड़े वाले सारे मुद्दे खत्म करो अब बहुत हुआ
सब रूठे रिश्तों में अपनेपन की हाला घोलो जी
~~
रमा अगर चाहो तो फूटेंगी बंजर में भी कोंपल
उर की गंगा में अपने मन के सब संशय धोलो जी
~~
रमा प्रवीर वर्मा