घिर रही बदरिया
घनन घनन घिर रही बदरिया
नभ पर देखो छाए है
रिमझिम रिमझिम बरसे तो
मतवाला दिल हो जाये है
सावन में मोहे लागे नीको
मन में हूक उठाये है
नाचे मयूरा कूके कोयलिया
मन चंचल हो जाये है
ऐसे मे तू आजा सांवरिया
काहे को तरसाये है
डार के झूला संग झूलेंगे
सोच के मन हर्षाये है।
— डॉ. माधवी कुलश्रेष्ठ