जिन्दगी
नाशाद सी लगे,कुछ खफा सी लगे।
आजकल जिन्दगी, हादसा सी लगे।
बहुत गहरा ताल्लुक है अश्कों से,
दर्द की तडफ महबूबा सी लगे।
तूफान मुझ पे हो गए मेहरबां,
हर लहर मुझे नाखुदा सी लगे।
मै परेशां हूँ , कशमकशे जिन्दगी से,
जिन्दगी भी कुछ पशेमां सी लगे।
शुक्रिया अहले जहां तेरी बेरुखी का,
के बद्दुआ भी मुझ को दुआ सी लगे।
चाँदनी रात,ये सुलगते जजबात,
अरमानों की बरात धुआं सी लगे।
कोई कहे फूल, कोई कहे चाँदनी,
मगर ये शै मुझ को खुदा सी लगे।
खो गए विसाले यार के रात दिन,
तुम बिन जिन्दगी सहरा सी लगे।
दोस्तों की बेरुखी का गिला क्या”सागर”,
फरेबे नजर भी मेहरबां सी लगे।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर “