“मुक्तक”
साहस इनका देखिए, झोली में पाषाण।
कहते हैं मेरा वतन, बात-बात में वाण।
आतंकी के देश से, आया कैसे गैर-
मिला मंच खैरात का, नृत्य कर रहा भाण॥-1
लेकर आओ हौसला, हो जाए दो हाथ।
क्यों करते गुमराह तुम, सबके मालिक नाथ।
बच्चे सभी समान हैं, तेरे मेरे लाल-
उनसे छल तो मत करों, खेलें खाएँ साथ॥-2
शौर्य तुम्हारा देखता, सीधा सकल जहान।
तेरे घर में पल रही, आतंकी पहचान।
नरक किया पावन धरा, सिंधु हुई बेहाल-
कहाँ पाक रहने दिया, वीरों का सम्मान॥-3
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी