कविता

कविता

कुछ अनकहे शब्द उकेर देना चाहती हूँ इन कोरे पन्नों पर…
कोई समझे, न समझे मैं तो समझती हूँ….
तुम्हें शब्दों में ढालकर….
गीतों से सजाना चाहती हूं इन पन्नों पर…
तुमसे जुड़ी हर वो बात हर वो लम्हा जिसमें मैं और तुम.. बस”हम” थे उतार देना चाहती हूँ इन पन्नों पर…
तुम्हारी हर वो अनकही बात जो अपनी खामोशी से…
मेरे दिल में कोलाहल मचाती हुई गुज़री….
उतार देना चाहती हूँ इन  पन्नों पर…
सर्दियों की मीठी धूप और बरसात की भीगी हुई रात का…
कुछ सर्द औऱ भीगा हुआ किस्सा.
उतार देना चाहती हूँ इन  पन्नों पर….
सागर की गहराई सा प्यार लिये
जब तुम आये थे जीवन में…..
उसमें डूबकर खो जाने का एहसास…
उतार देना चाहती हूँ इन  पन्नों पर….
महकती हुई शाम का…
इंतज़ार करती बस अपने श्याम का….
दिल के सारे अरमान उतार देना चाहती हूँ इन पन्नों पर….
आधे अधूरे ख्वाबों को परवाज़ देने की चाह लिये…
दिल की सारी ख़लिश निकाल देना चाहती हूँ…
इन पन्नों पर…..
कोई समझे, न समझे मैं तो समझती हूँ….
प्रियंका त्रिवेदी

प्रियंका त्रिवेदी

पाण्डे कॉलोनी बिजवार जिला-छतरपुर(म. प्र.) 471405