” पाखण्ड “
” पाखण्ड ”
भाव जगाना हमको आता ,
रंग जमाने में क्या जाता !
हाथ हमारे भले कुछ नही ,
शरणागत वह सब पा जाता !!
पढ़े लिखे हैं चाहे थोड़े ,
दौड़ा करते अपने घोड़े !
यहाँ धर्म की बिछा बिसातें ,
स्वाद जीत का पाया जाता !!
मूल मंत्र हमने यह जाना ,
लोगों को कैसे भरमाना !
गुरुता का जब पाठ पढ़ाओ ,
हाथ खजाना ही आ जाता !!
प्रभु की राह नहीं पहचानी ,
गढ़ने लागे नई कहानी !
सम्मोहन नज़रों से बांधा ,
दुनिया को पीछे पा जाता !!
अपनी दुनिया नई रचाई ,
पाट रहे थे हम तो खाई !
शासन ने दे दी जागीरें ,
नेता भी मुट्ठी आ जाता !!
कनक समान देह चमकाई ,
सुरा , सुंदरी जगह जो पाई !
भीड़ बड़ी भक्तों की जैसे ,
समय द्वार पर ठहरा जाता !!
एक दिन फन्दा आगे आया ,
पछतावे का समय न पाया !
सच्चाई हम जान गये थे ,
हाथों से सब छूटा जाता !!