मुतल्ला गजल
जान लेंगी मेरी आज ये हिचकियां
याद आती रही वस्ल की मस्तियां
रास आने लगी जब से तन्हाइयां
फुसफुसाती रही रात भर आंधियां
कोई जाने हमारी न मजबूरियां
दूर रहकर बनाई हैं नजदीकियां
उम्र दर उम्र करते रहे गलतियां
जान कर भी बजाते रहे तालियां
इश्क में बारहा लग चुकी अर्जियां
पर हुई इश्क में कितनी बदनामियां
यूं हजारों रही मुझमें ही खामियां
ढूढ़ता रह गया कागजी – गलतियां
खूब सजती रही शौक से थालियां
याद आती रही मां तेरी रोटियां
गुनगुनाती रही है यहां आंधियां
फूलो सी जब महकने लगी वादियां
इश्क़ में जो हुई मेरी बदनामियां
आती हैं याद अक़्सर वही तालियां
— कुमार अरविन्द