रोते बादल
सारी रैना रोते बादल ।
घूमा करते हैं, आवारा ।
जैसे कोई गम का मारा ।
थक कर फिर ये झुक जाते हैं,
जैसे कोई पथिक हो हारा।
रात रात चपला चिल्लाती ,
भला कहाँ हैं,सोते बादल ?
सारी रैना रोते……………
जब वियोग,घन नैना,तरसे।
उर पीड़ा कहने को बरसे।
दादुर, झींगुर, मोर , पतंगे,
घन के दुख में ,अतिशय हरषे।
पुरवाई का छोर थामकर ,
अपना दुखड़ा ढोते बादल ।
सारी रैना ……………….
ये धरती का रुप सजाते ।
धानी चूनर ले के आते ।
यह नवयौवन दे देतें हैं
सर सरिता सारे बलखाते।
मरकत मणि सा चमका देते,
पत्ता- पत्ता धोते बादल ।
सारी रैना ……………….
…© डॉ दिवाकर दत्त त्रिपाठी