सावन का गीत
झूले लुभा रहे हैं मन को ,
कहीं छिपी मनुहार है !
बाग बगीचे भरे पड़े हैं ,
अधर बसी तकरार है !!
बरसे बदरा थके थके अब ,
छाई हुई बहार है !
आज गगन अठखेली करता ,
रंगों की भरमार है !
पसरी पसरी सी हरियाली ,
करती दिखे श्रृंगार है !!
लिये तूलिका सावन आया ,
चित्र अनूठे बिखरे हैं !
कानन ,सरिता ,सागर सारे ,
लगे सभी बेफिक्रे हैं !
हरी भरी है सोच सभी की ,
अधरों चढ़ी पुकार है !!
लहराकर झूमें हैं झूले ,
खींचें अपनी ओर है !
जहाँ झूमता लकदक यौवन ,
पकड़े कसकर डोर है !
हंसी ठिठोली , गीत लबों पर ,
खुशियाँ करे फुहार है !!
दूर दूर तक तकती आँखें ,
जिनका ओर न छोर है !
दिल से दिल का नाता ऐसा ,
मनवा हुआ विभोर है !
पुरवाई ले जा सन्देशा ,
कोई करे गुहार है !!