गजल
सामने खड़ा हो यम सर नहीं झुकाना है।
दाग दार चहरों को आइना दिखाना है।।
रोशनी गरीबों के घर तलक जो पहुँचाये।
दीप एक ऐसा भी देश में जलाना है।।
जिंदगी सदा बिखरी ही रही किताबों सी।
चैन से पढ़ो जी भर तुमसे क्या छिपाना है।।
चाह कर भी आँखों से आ सका न जो बाहर।
वक्त के सितम से उस अश्क़ को बचाना है।।
बात बात पर इतना मीत क्यों भड़कते हो।
उम्रभर का रिश्ता है प्यार से निभाना है।।
एक बार सुन लोगे नित्य गुनगुनाओगे।
भूलना नहीं आसाँ व्यग्र का तराना है।।
— उत्तम सिंह ‘व्यग्र’
मो. 9414445432