“छंद चवपैया ” (मात्रिक )
शिल्प विधान- कुल मात्रा =30 (10,8,12) 10 और 8 पर अतिरिक्त तुकान्त
“छंद चवपैया ” (मात्रिक )
जय जय शिवशंकर, प्रभु अभ्यांकर, नमन करूँ गौरीशा।
जय जय बर्फानी, बाबा दानी, मंशा शिव आशीषा॥
प्रतिपल चित लाऊँ, तोहीं ध्याऊँ, मन लागे कैलाशा।
ज्योतिर्लिंग द्वादस, पावन पावस, दर्शन चित अभिलाषा॥
हे डमरूधारी, शिव अवतारी, सोमनाथ हितकारी।
हे मल्लिकार्जुन, हे महाकाल, हे शिव भीमा धारी॥
हे रामेश्वरम, बैद्यनाथम, केदारनाथ धामम।
हे जगत निरूपम, नागेश्वरम, हे काशी अभिरामम॥
हे घृश्नेश्वर, ओंकार प्रखर, हे विश्वनाथ दानी।
त्रयम्ब्केश्वरम, ममलेश्वरम, हे शिव अवघड़दानी॥
शिव नीलकंठ हे, त्रिशूल धर हे, बाबा नंदी असवारी।
हे महादेव मुनि, सोमवार दिन, श्रावण भक्त सुखारी॥
तन धरि मृगछाला, चंद कराला, जटा-जूट हर गंगा।
भल भष्म भुवाला, विषधर काला, घूँट रही माँ भंगा॥
गौतम गुण गाए, मन हर्षाए, क्षमा करहु भगवंता।
तम व्याधि न आए, शुभता छाए, बाढ़े कुल सुत संता॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी