इतिहास

भारतीय खून-पसीने से समृद्ध मॉरीशस

हिंद महासागर के दक्षिण पश्चिम में स्थित लगभग साढ़े ग्यारह लाख की जनसंख्या वाला देश मॉरीशस विश्व के श्रेष्ठ दर्शनीय द्वीपों में से एक है. अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही आर्थिक दृष्टि से भी इसने विश्व के समृद्ध राष्ट्रों में अपना स्थान बना लिया है. इसका अंदाजा यहां के प्रति व्यक्ति वार्षिक आय ( 10186 अमरिकी डॉलर) से सहज ही लगाया जा सकता है. चीनी उत्पादन एवं पर्यटन उद्योग इस देश की प्रगति की रीढ़ हैं. देश की 90 प्रतिशत कृषि भूमि पर गन्ने का उत्पादन होता है और प्रतिवर्ष यूरोप, अफ्रीका, एशिया एवं आस्ट्रेलिया से लाखों पर्यटक यहां सैर कर विदेशी मुद्रा भंडार को समृद्ध करते हैं.

12 मार्च 1968 को ब्रिटिश आधिपत्य से स्वतंत्र हुए मॉरीशस को इस समृद्धि तक पहुंचाने में उन हजारों आप्रवासी भारतीयों का योगदान है जिन्होंने 150 वर्षों तक पूरी आस्था और लगन से यहां की बंजर भूमि में खून पसीना एक किया और हंसते हुए हरे-भरे खेत में परिवर्तित कर दिया. अपमान के कड़वे घूंट भी उन्होंने पिए और अपनी भाषा व संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष भी किया. आज मॉरिशस की 68 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल के लोगों की है, जिसमें 52 प्रतिशत हिंदू तथा 16 प्रतिशत मुस्लिम हैं. आज मॉरिशस की अर्थव्यवस्था, राजनीति और सामाजिक प्रगति में भारतीय महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं.

मॉरीशस को सदैव “लघु भारत” की संज्ञा दी जाती रही है, किंतु अब मॉरीशस को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखना अधिक उपयुक्त होगा. आज मॉरीशस भारतीय मूल के निवासियों की अधिकता के बावजूद बहुनस्ली एवं बहुअंतर्राष्ट्रीय भाषा-भाषी देश हो चुका है और भारत से कई क्षेत्रों में अपनी श्रेष्ठता भी सिद्ध कर चुका है. अंतरराष्ट्रीय विनिमय दर में मॉरीशस रुपया भारतीय रुपए की तुलना में दो गुना हो चुका है. मॉरीशस की धरती पर पैर रखते ही हमें ऐसा एहसास हुआ मानों हम किसी यूरोपीय देश में पहुंच गए हैं. सर शिवसागर गुलाम एयरपोर्ट से हमारे गेस्ट हाउस तक की लगभग 70 कि.मी. की दूरी हमने मात्र 50 मिनट में तय कर ली. हमारा ड्राइवर ईश्वर हिंदी बहुत अच्छी तरह बोल लेता था. उसका कहना – यहां तो गाड़ियों की सामान्य रफ्तार 90 से 120 कि.मी. होती है.

एयरपोर्ट से पोर्ट लुईस व ग्रैंडबे से गुजरते हुए भव्य अट्टालिकाओं एवं गन्ने के खेतों से मॉरीशस की समृद्धि झलक रही थी. गेस्ट हाउस पहुंचने पर पता चला कि आगामी तीनों दिन मॉरीशस में अवकाश रहेगा. हम इसी सोच में थे क्या यहां भी भारत की तरह छुट्टियां खूब रहती हैं ? इसी बीच हमारे साथ उपस्थित मॉरीशस दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक श्री विजय मधु ने बताया कि यहां ऐसा संयोग सालों में एक आध बार ही बनता है. वर्ष के 13 सार्वजनिक अवकाशों में इस बार रविवार के साथ सोमवार (13 फरवरी महाशिवरात्रि) एवं 14 फरवरी (चायनीय नव वर्ष) की छुट्टी थी. इन तीन दिनों के अवकाश में हमें मॉरीशस की पूर्वी और पश्चिमी संस्कृतियों के दर्शन गहन रूप से हुए.

हमारा दल यहां विशेष रूप से महाशिवरात्रि के पर्व में भागीदारी हेतु ही पहुंचा था. यहां शिवरात्रि के त्यौहार ने राष्ट्रीय स्वरुप ग्रहण कर लिया है. मॉरीशस के दक्षिण पश्चिम में स्थित गंगा तालाब पर पूरा मॉरीशस उमड़ पड़ता है. 110 वर्ष पूर्व भारत की पवित्र नदियों से प्रतीकात्मक रुप से जल लाकर “परी तालाब” में डाला गया और इसे नाम दिया गया “गंगा तालाब”. इसी तालाब के पास बना है तेरहवां ज्योतिर्लिंग मारीशेश्वर. शिवरात्रि के एक दिन पूर्व मॉरीशस के गांव-गांव और मोहल्ले-मोहल्ले से हजारों भक्तगण पैदल चलकर गंगा तालाब पहुंचते हैं.

‘गंगा तालाब के 101 वर्ष’ शीर्षक से तैयार की गई डॉक्यूमेंट्री फिल्म मॉरीशस के वित्त मंत्री श्री बनवारी ने लोकार्पित की तथा इसका प्रथम प्रदर्शन भी हुआ. भारत में किसी समारोह में मंत्रियों के आगमन पर जो आडंबरपूर्ण ताम-झाम किए जाते हैं, मॉरीशस में वह कहीं देखने को नहीं मिले. मॉरीशस में रामायण को जबर्दस्त लोकप्रियता प्राप्त है. मॉरीशस में सैकड़ों रामायण मंडलिया हैं. इंदिरा गांधी सांस्कृतिक कला केन्द्र में विद्यार्थियों की रामायण की चौपाइयों की राष्ट्रीय प्रतियोगिता का अंतिम दौर का अवलोकन अत्यंत सुखद था.

मॉरीशस में छुट्टी के दिनों में यूरोपीय पर्यटकों की बेतहाशा भीड़ रहती है. नीले समुद्रीजल एवं सफेद बालू रेत वाले समुद्र तटों का सौंदर्य देखते ही बनता है. समुद्र तटों तक पर्यटक कैंप लगाकर दो-तीन दिन मौज मस्ती से गुजारते हैं और फिर अपने गंतव्य पर लौट जाते हैं. अनेक तरह के वाटर स्पोर्ट्स विशेष आकर्षण के केंद्र होते हैं. पैरासेलिंग (पैराशूट से आकाश की सैर) और सी-वाक (समुद्र के अंदर सैर) का रोमांचक अनुभव हमारे लिए यादगार बन गया. यद्यपि इसके लिए बड़ी राशि का भुगतान करना होता है. माइक्रो ग्लास जड़ी हुई बोट से समुद्र तल की वनस्पतियों एवं जीव जंतुओं को देखना भी विलक्षण था.

मॉरीशस के एक छोर से दूसरे छोर तक आप अधिकतम 3 घंटे में पहुंच सकते हैं. क्षेत्रफल की तुलना में आबादी कम होने से गांव, शहर काफी फैले हुए हैं. ग्रामीण अंचलों में भी समृद्धि इतनी है कि भारतीय चश्मे से गांव और शहर के बीच भेदक रेखा खींचना अत्यधिक मुश्किल है. मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुइस को तो पिछले 5 वर्षों में अत्यधिक आकर्षक स्वरूप प्रदान किया गया है. मात्र 45 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली इस राजधानी में मॉरीशस की आत्मा बसती है.

मॉरीशस के लगभग एक लाख नौकरी पेशा और व्यवसायी प्रतिदिन सुबह पोर्ट लुईस आते हैं और शाम को लौट जाते हैं. पोर्ट लुइस के सभी बाजार व दफ्तर शाम तक पूर्ण रूप से बंद हो जाते हैं. मॉरीशस में बेरोजगारी का प्रतिशत शून्य है. यहां की श्रमिकों की मजदूरी काफी अधिक होने से आज भी भारत से मजदूर यहां लाए जाते हैं. यहां के सर्वाधिक प्राचीन त्रिओले के शिव मंदिर में हमारी मुलाकात ऐसे ही भारतीय मजदूरों से हुई. उन्हें 2 वर्ष के करार पर यहां एक होटल निर्माण हेतु लाया गया. उत्तर प्रदेश से आए यह मजदूर काफी प्रसन्न दिखाई दिए.

मॉरीशस की राजभाषा अंग्रेजी है किंतु सर्वत्र फ्रेंच और क्रेओल (मॉरीशस की अपनी भाषा) का बोलबाला है. भारतीय मूल के अधिकांश वासी हिंदी भी समझ लेते हैं किंतु सामान्य बोलचाल में हिंदी का प्रयोग बहुत कम होता है. मॉरीशस के विद्यालय एवं महाविद्यालयों में पांच भारतीय भाषाएं पढ़ाई जाती हैं, किंतु हिंदी पढ़ने वाले विद्यार्थियों का प्रतिशत सर्वाधिक है.

आजादी के 50 वर्षों में मॉरीशस विश्व मंच पर अपनी पहचान स्थापित कर चुका है. गन्ना और पर्यटन उद्योग के साथ ही चाय और कपड़ा उद्योग भी फल-फूल रहा है. सी-फूड के उत्पादन के लिए तो यह प्रसिद्ध है ही. मछली पालन और उत्पादन में भी यहां कीर्तिमान बने हैं. विश्व में सर्वाधिक वजन वाली मछली (507.76 किलोग्राम) पकड़ने का रिकॉर्ड भी ब्लेक रीवर, मॉरीशस के नाम ही दर्ज है. मॉरीशस के बाजार पर आज फ्रांसीसियों एवं चाइनीज लोगों का प्रभुत्व अधिक है. भारतीय बैंकों में “बैंक ऑफ़ बड़ौदा” और “भारतीय स्टेट बैंक” प्रभावी ढंग से कार्यरत है. मॉरीशस की भूमि पर आज भी भारतवासियों के प्रति असीम आदर व श्रद्धा का भाव है. अपनी एक सप्ताह की मॉरीशस यात्रा में हमने इसे हर पल महसूस किया.

— डॉ. जवाहर कर्नावट

(साभार – वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)