गीतिका/ग़ज़ल

गजल

है मकाँ चारो तरफ अब घर नही मिलता मुझे
दर्द की दुनियां में इक रहबर नही मिलता मुझे
अब किताबो में बचे कुछ फूल मुरझाए हुए,
ढूंढ़ता हूँ दर ब दर दिलबर नही मिलता मुझे
 हर तरह के ऐश है दिल को सुकूँ फिर भी नही,
माँ तुम्हारी गोद सा बिस्तर नही मिलता मुझे
बस्तियाँ वीरान दिल की छोड़ वो जबसे गया,
रोशनी का अब नया मंज़र नही मिलता मुझे
मन की बातों से किसी का पेट अब भरता नही
मारती महँगाई है छप्पर नही मिलता मुझे
क्यो दरिन्दे घूमते बेख़ौफ़ होकर अब यहाँ,
बेटियों के हाथ में खंजर नही मिलता मुझे
मैं फ़कीरा आज भी हूँ पास मेरे कुछ नही,
आज भी खाना “निगम”जी भर नही मिलता मुझे
बलराम निगम

बलराम निगम

कस्बा-बकानी, जिला-झालावाड़, राजस्थान