“गज़ल”
वज़्न- 1222 1222 1222 1222, काफ़िया-आन, रदीफ़- का आरा
उड़ा अपना तिरंगा है लगा आसमान का तारा
तिरंगा शान है जिसकी वो हिंदुस्तान का प्यारा
कहीं भी हो किसी भी हाल में फहरा दिया झंडा
जुड़ी है डोर वीरों से चलन इंसान का न्यारा।।
किला है लाल वीरों का जहाँ रौनक सिपाही की
गरजता शेर के मानिंद हिंद उत्थान का नारा।।
दिखा उत्साह बच्चों में इरादों में दिखी चाहत
नज़ारा देखते बनता चढ़ा विज्ञान का पारा।।
सलामी तोप की तलवार की हुक्कार वीरों की
कदम की ताल पर चलता रहा ईमान का दारा।।
सुने जयहिंद का नारा तो दुश्मन हो गए घायल
निगाहों से बहा उनके सरक जल नयन का खारा।।
कहाँ नादान है गौतम मिला उनसे भी जाकर के
अदब से ही मिले वो भी लिए जो दान का चारा।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी