कविता

दुःखता है

कुछ दुखता है …..
जब खोकर अपना अस्तित्व,
मिटाकर अपना सम्पूर्ण वजूद भी
नही मिलता मुझे मेरे अधिकार
जब रखती हूं तुम्हारी छोटी-छोटी
बातों का ख़्याल
और परवाह नही होती तुम्हें मेरी
छोटी सी आदत की भी
तब …कुछ दुखता है …
जब देती हूं तुम्हें और तुम्हारी
बातों को प्राथमिकता
रखती हूं हर पल तुम्हारे मान-सम्मान का ध्यान
और तुम ….
तुम मेरी हर बात को
बकवास कहकर चुप करवाते हो
फिजूल की बातें मत करो कहकर टाल जाते हो
मेरी ज़रा सी गलती पर …मुझपर
हाथ उठाने की बात कह जाते हो
तब …कुछ दुखता है….
माँ सदैव कहती रहती थी
ससुराल तुम्हारा असली घर है
किन्तु छोटी-छोटी बातों पर जब तुम कहते हो
“यहाँ रहना है तो मेरे हिसाब से रहो
वरना चली जाओ अपने घर ”
तब सोचती हूँ मैं …
आखिर कौन सा है मेरा असली घर ??
तब ….कुछ दुखता है …
सोचती हूँ ईश्वर ने क्यों ये अन्याय हमारे साथ किया !!
वंश को बढ़ाने…मकान को घर बनाने… रिश्ते निभाने का
सम्पूर्ण अधिकार तो औरत को दिया
पर किसी भी घर को अपना घर
कहने से हमको ही वंचित कर दिया …..
तब कुछ नही ….बहुत कुछ दुखता है….
सच कहती हूँ भीतर ही भीतर ….बहुत कुछ दुखता है….

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]