कलयुग
फिक्र सभी को है,गाँव शहर मोहल्ले की।
जिक्र कोई नही करता ,खुलकर हल्ले की।।
शांति ढूंढने से भी नही, मिल रही जमाने मे ।
हर कोई मस्त है बस, अपनी धुन मे गाने मे ।।
रोज कतल बलवे लूट,बलात्कार भी गाड़ी मे।
छोटी-छोटी बिटिया भी,मिल रही है झाड़ी मे।।
सच मे दहशत दे दिया है,कलयुग ने जमाने मे।
लोग घर फूँक रहे है खुद का,भले अनजाने मे।।
एक- एक शब्द अब वेद रामायण या गीता के ।
नजर आने लगे है फिर,राम रावण और सीता के।।
समय बस नजदीक है ,बचने और बचाने के ।
दिख रही है झलक, इंसान को इंसान की खाने के।।
हृदय जौनपुरी