कविता

बृजभाषी रचना – कृपादृष्टि

भगवान श्रीकृष्ण के वियोग में
तड़पि रहे भारी
बृज के गोप-गोपियां
दे हूकारी टेर लगावैं
एक-एक पल चैन सूं रह न पावैं |
कित कूँ गये श्यामसुंदर!
विरह की आग में जलि-जलि जावैं ||
वह दिन कब आवैगो
कान्हा वृंदावन में माखन मिश्री खावैगो
बुझि जागी सब आग विरह की
जब मोहन मुरली मधुर बजावैगो ||
जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण वृंदावन में आये
अपनी कृपादृष्टि बरसाई
तत्त्वोपदेश का अमृतपान करायो
गोप-गोपियन का जीवन सफल बनायो ||
बंधाईकैं ढाढस मोहन ने
साधक-भक्त बनाये
मंगलकारी साक्षात् हरि-दर्शन कराये ||
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111