बृजभाषी रचना – कृपादृष्टि
भगवान श्रीकृष्ण के वियोग में
तड़पि रहे भारी
बृज के गोप-गोपियां
दे हूकारी टेर लगावैं
एक-एक पल चैन सूं रह न पावैं |
कित कूँ गये श्यामसुंदर!
विरह की आग में जलि-जलि जावैं ||
वह दिन कब आवैगो
कान्हा वृंदावन में माखन मिश्री खावैगो
बुझि जागी सब आग विरह की
जब मोहन मुरली मधुर बजावैगो ||
जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण वृंदावन में आये
अपनी कृपादृष्टि बरसाई
तत्त्वोपदेश का अमृतपान करायो
गोप-गोपियन का जीवन सफल बनायो ||
बंधाईकैं ढाढस मोहन ने
साधक-भक्त बनाये
मंगलकारी साक्षात् हरि-दर्शन कराये ||
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा