दिलों की दूरियां!!
कहीं सूखा, कहीं पर बाढ़, बहुत बेकार लगता है।
घुटे प्रतिछन जब जिनगी, बुरा संसार लगता है।।
भरी नफरत दिलों मे है,कलंक हर बार लगता है।
रंगों का त्योहार भी अब तो,बुरा त्योहार लगता है।।
बहुत परखा,बहुत जाचा ,मगर धोखे दिये अपने।
मेरी तकदीर मे शायद,सदा नुकसान लगता है ।।
दिलों से दूरिया मिटे, भला अब कौन चाहेगा ।
हर शख्स को अब तो,नफा-नुकसान दिखता है।।
अजान ,घंटिया,गुरवानी सब,बनी सियासत है।
जो आम है उसको अब,सब बे काम लगता है।।
यहाँ हर भाव मे है ,अब अभाव मोहब्बत का ।
जिसे पाने ,पचाने मे,बड़ा बलिदान लगता है।।
— हृदय जौनपुरी