मृत्यु तेरा अभिनन्दन है!
जीत सके तो जीत मुझे तू मृत्यु तेरा अभिनन्दन है।
संघर्षों का नाम है जीवन ब्यर्थ तेरा आक्रदंन है।
चलते चलते गिरा जमीं पर थोड़ा सा घबराया था।
तुमने समझा हार गया मैं ज्ञात तभी हो पाया था।
ठोकर खाकर पुनः सम्हलना असफलता का कंदन है।
जीत सके तो जीत मुझे तू मृत्यु तेरा अभिनन्दन है।
सत्य यही है वही मिलेगा जो किस्मत का लेखा है।
जी भर के जी लूँ इस पल को कल को किसने देखा है।
घुट घुट कर जीने का मतलब सांसों का स्कंदन है।
जीत सके तो जीत मुझे तू मृत्यु तेरा अभिनन्दन है।
हैं संकल्प अधूरे अनगित फिर कैसे विश्राम करूँ।
पहले ऋण भर दूँ जीवन का फिर तन तेरे नाम करूँ।
मृत्यु अटल है ज्ञात सभी को फिर कैसा स्पंदन है ?
जीत सके तो जीत मुझे तू मृत्यु तेरा अभिनंदन है।
जारी है …….
— शिव चाहर मयंक
नोट- कंदन – नाश; स्पंदन – कांपन; स्कंदन – निकलना, शोषण; आक्रदंन – चिल्लाना, जोर से पुकारना