गीत/नवगीत

मृत्यु तेरा अभिनन्दन है!

जीत  सके  तो  जीत  मुझे तू मृत्यु तेरा अभिनन्दन है।
संघर्षों  का  नाम  है  जीवन  ब्यर्थ  तेरा  आक्रदंन  है।

चलते  चलते  गिरा  जमीं  पर थोड़ा  सा  घबराया था।
तुमने  समझा  हार   गया   मैं ज्ञात  तभी हो पाया था।
ठोकर खाकर पुनः सम्हलना असफलता का कंदन है।
जीत  सके  तो  जीत  मुझे  तू मृत्यु तेरा अभिनन्दन है।

सत्य  यही  है  वही  मिलेगा  जो  किस्मत का लेखा है।
जी भर के जी लूँ इस पल को कल को किसने देखा है।
घुट  घुट  कर  जीने  का  मतलब सांसों  का  स्कंदन है।
जीत  सके  तो  जीत  मुझे  तू  मृत्यु तेरा अभिनन्दन है।

हैं संकल्प  अधूरे  अनगित  फिर  कैसे  विश्राम करूँ।
पहले ऋण भर दूँ जीवन  का फिर तन तेरे नाम करूँ।
मृत्यु  अटल  है  ज्ञात  सभी  को  फिर कैसा स्पंदन है ?
जीत  सके  तो  जीत  मुझे  तू  मृत्यु तेरा अभिनंदन है।

जारी है …….

शिव चाहर मयंक

नोट- कंदन – नाश;      स्पंदन  – कांपन;     स्कंदन – निकलना, शोषण;    आक्रदंन – चिल्लाना, जोर से पुकारना

शिव चाहर 'मयंक'

नाम- शिव चाहर "मयंक" पिता- श्री जगवीर सिंह चाहर पता- गाँव + पोष्ट - अकोला जिला - आगरा उ.प्र. पिन नं- 283102 जन्मतिथी - 18/07/1989 Mob.no. 07871007393 सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन , अधिकतर छंदबद्ध रचनाऐ,देश व विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित,देश के अनेको मंचो पर नियमित कार्यक्रम। प्रकाशाधीन पुस्तकें - लेकिन साथ निभाना तुम (खण्ड काव्य) , नारी (खण्ड काव्य), हलधर (खण्ड काव्य) , दोहा संग्रह । सम्मान - आनंद ही आनंद फाउडेंशन द्वारा " राष्ट्रीय भाष्य गौरव सम्मान" वर्ष 2015 E mail id- [email protected]