श्रद्धांजलि
शालीनता सभ्यता आदर्श का संगम
याद करेंगे भावों के चितेरा तुम्हे हरदम
भारत माता का सपुत आया था
अटल नाम कहलाया था
गीत लिखता था काल कपाल पर
राजनीति में जनता का प्यार पाया था
कवि मन से व्याकुल रहते
लोहे मन से लेते निर्णय हर कदम
मौन रहकर भी जुबां बहुत कुछ कहती थी
तेरी मुस्कान के पीछे अथाह पीड़ा रहती थी
परमाणु परीक्षण करा नाम को साकार किया
हम भारतीयों को गर्व का एहसास दिया
लड़े तुम ,अड़े तुम कि ध्वज ना झुकने दिए तुम
माँ की स्वतंत्र दामन पर ना लगे दाग
इस हेतु प्राण पखेरू ना उड़ने दिए तुम
साँस रह रह कर चलती थी
भारत माँ की विजय गाथा कहती थी
लौ बुझ गई पंछी उड़ गया, संग तेरे सपना टूट गया
अश्रुपूर्ण नेत्रों से माँ करेगी इन्तजार अपने लाल का
आना तुम फिर गाने गीत काल कपाल का ।
— किरण बरनवाल