संघर्ष और विजय
भाई वह होता है , जो अपनी बहन की रक्षा करे , उसका ख़्याल रखे , बहन के लिए कवच का काम करें ! लेकिन रुकिए आगे मत सोचिये , क्योँकि मेरा भाई इन सब में से कुछ नहीं है ! पर एक बात है , वह बहुत प्यारा है , और मेरी जान है ! मेरे पिताजी हमे दुनिया में अकेला छोड़ कर उस समय चले गए , जबहमे उनकी सब से अधिक जरूरत और थी , और उनके साथ की भी , लेकिन शायद हमारी किस्मत में बाबा जी (गुरु नानक देव जी ) ने कुछ और ही लिखा था ! घर में एक मेरे पिता जी ही थे, जो कमाते थे, उनका अच्छा खासा बिज़नेस था , दो ट्रकों के मालिक थे (ट्रांसपोर्ट) का बिज़नेस था ,और मेरी मम्मी एक कुशल गृहिणी के साथ एक अच्छी माँ और पत्नी भी थी !
जब मैं 15 वर्ष की ही थी , तब उन्होंने मेरा साथ छोड़ दिया , मेरा भाई मेरे से 5 साल छोटा था , जिंदगी ऐसे मोड़ पर थी , कि क्या करे क्या सोचे कुछ समझ में ना आता था , इसलिए एक दिन मेरी माँ ने मेरे बड़े पापा (पिता जी के बड़े भाई ) से बात की ,और कहाँ की ट्रकों को तो मैं नहीं संभल पाउगी , आप मुझे यह ट्रैक बेचने में मदद करे , ताकि मैं कोई दुकान खोल कर अपने बच्चों का पेट पल सकूँ ! मम्मी को बहुत विश्वास था , होना भी चाहिये था , आख़िर वह पापा जी के बड़े भाई जो थे । इसलिए ईमानदारी से हमारी मदद करेंगे , पर उन्होंने हमारे साथ धोखाकिया , पापा का सारा बिज़नेस बेच कर , कुछ थोड़े से पैसे मेरी माँ को दे गए , और कहे गए की मार्किट में इस से ज्यादा पैसे कोई नहीं दे रहा था ! मम्मी भी चुप रही , क्योंकी मम्मी को कही ना कही उन पर शक था , पर कुछ कहे ना सकी , क्योकि वह पापा के सगे भाई थे ,
लेकिन जब मुझे पता लगा कि , उन्होंने ऐसा किया है , वो भी अपने भाई के बच्चो के साथ , तब से मुझे विश्वास क्या भाई नाम से ही नफ़रत सी होने लगी थी , क्या कोई ऐसा भी कर सकता है !लेकिन समय बिता गया , और शायद मेरा बर्ताव मेरे भाई के प्रति कुछ ठीक नहीं रहता था , लेकिन कुछ समय बाद मुझे कॉलेज में दाख़िला लेना था , तब मम्मी ने मुझसे कहाँ –
“तुम्हे आगे पढ़ने के लिए थोड़ा इंतज़ार करना होगा , क्यूकि अभी मेरे पास पैसे कम है , जिससे मैं अभी सिर्फ घर ही चला सकती हु बेटा “
मैं चुप रही , और मम्मी के साथ दुकान पर उनकी मदद करने लगी , लेकिन शायद यह बात मेरे भाई को पता चल गई थी, वह अभी 8 साल का ही था ,लेक़िन उसकी चित्रकला बहुत ही अच्छी थी , सब उसकी चित्रकला की तारीफ़ करते थकते नहीं थे , लेकिन अब समय आ गया था , कि वह अपनी बहन केलिए कुछ करें ! उसने लोगो को काफी अच्छे – अच्छे चित्र बना कर दिए , और उनसे कुछ पैसे भी लेनेगा , ताकि वह मुझे कॉलेज भेज सके !
कुछ समय बाद उसने मुझे 5000 रुपया लाकर दिए , और कहा कि “दीदी आप कल से कॉलेज जाना, मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता , कि आप घर पर रहती हो , और मैं स्कूल जाता हु ”
उसकी यह बात सुन कर मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आया , कि आज तक मैं जिस भाई को किसी और की वज़ह से गलत मानती रही, आज वही मेराभाई मेरी पढ़ाई के लिए दिन रात एक करके लोगो के लिए स्टोर रूम में बैठ कर पेंटिंग बनता रहा ! ताकि मैं जीवन में आगे जाऊँ.
लेकिन आज वही बच्चे एक वक़ील और दूसरा प्रोफेसर है !
– चाँदनी सेठी कोचर (दिल्ली)