आज़ादी का त्योंहार
आज़ादी का जश्न,
आज़ादी, कितना प्यारा शब्द है
कौन नही चाहता अपनी आज़ादी
बच्चे, बुड्ढे, औरत या आदमी
आज़ादी की हवायें, सभी को है प्यारी
पर इतनी आसानी से मिलती कहाँ है आज़ादी?
लड़ना पड़ता है कभी दूसरों से और कभी तो खुद से
और फिर यूँ भी है कि जो मिल जाये आसानी से,
उसकी क़ीमत कहाँ समझती है दर्द के बिना खुशियां
और, किल्लत के बिना रईसी कहाँ समझती है
आज़ादी की कीमत भी वो ही जान पाता है
जिसने कभी गुलामी देखी हो
फिर वो चाहे देश की हो या ख़ुद की वैचारिक
सही मायने में आज़ादी तभी होगी
जब कि हम मानसिक रूप से भी आज़ाद रहे
और ये भली तभी होगी जब नीति, नियमों,
अनुशासन के दायरों में रहे …सुमन “रूहानी”