गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

मापनी -2122 2122 2122 212, सामंत- आ, पदांत- दिख रहा

अटल बिन यह देश अपना आज कैसा दिख रहा

हर नजर नम हो रही पल बे-खबर सा दिख रहा

शब्द जिनके अब कभी सुर गीत गाएंगे नहीं

खो दिया हमने समय को अब इंसा दिख रहा।।

याद आती हैं वे बातें जो सदन में छप गई

झुक गए संख्या की खातिर नभ सितारा दिख रहा।।

खो दिया उस वक्त हमने देश के सपूत को

आज अर्थी वह उठी सबको जनाजा दिख रहा।।

जिंदगी से मौत होती कब बड़ी वे कह गए

दो घड़ी में जल गया सुंदर खजाना दिख रहा।।

सत्य होता है अटल झूठी अटल बातें नहीं

झूठ मलता हाथ अपना सत्य जाता दिख रहा।।

वक्त के गर साथ गौतम हो लिया होता तनिक

सच कहूँ तस्वीर होती इतर सपना दिख रहा।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ